सोमवार, 7 मई 2018

जानिए कितने करोड़ की सम्पत्ति के मालिक है मुकेश अंबानी के होने वाले दामाद आनंद परिमल


अमिताभ बच्‍चन और ऋषि कपूर जैसे सितारों से सजी तो आपने देख ली होगी. जिन लोगों ने नहीं देखी है, वो इसको इस तरह से समझ सकते हैं कि यह फिल्‍म जीवन के प्रति आस्‍था को दर्शाती है और जिंदगी के हर क्षण को पूरी शिद्दत के साथ जीने की वकालत करती है. संभवतया इसीलिए 102 साल का शख्‍स(अमिताभ बच्‍चन) 16 और साल जीने की कामना करते हुए दुनिया में सबसे अधिक समय तक जीवित रहने वाले व्‍यक्ति के रिकॉर्ड को तोड़ने की ख्‍वाहिश रखता है. वहीं दूसरी तरफ ऑस्‍ट्रेलिया के 104 वर्षीय उम्रदराज व्‍यक्ति जीवन से ऊब कर इसको खत्‍म करने की चाहत रखते हैं.
हालांकि डॉ डेविड गुडाल(104) को कोई गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन अब उनमें जीने की चाहत खत्‍म हो गई है. इसलिए वह के माध्‍यम से अपने जीवन को खत्‍म करना चाहते हैं. उनका कहना है कि दरअसल वह अपना सम्‍मान के साथ सुखद अंत चाहते हैं इसलिए वह ऐसी चाहत रखते हैं. उनकी इस इच्‍छा के साथ ही एक बार फिर से यूथेनेसिया के मसले पर बहस शुरू हो गई है.
 
डॉ डेविड गुडाल ऑस्‍ट्रेलिया के सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक हैं.(फाइल फोटो)

ऑस्‍ट्रेलिया से स्विट्जरलैंड रवाना
इसी कड़ी में ऑस्ट्रेलिया के सबसे उम्रदराज वैज्ञानिक पिछले दिनों स्‍वदेश छोड़कर स्विट्जरलैंड रवाना हो गए हैं. इच्छा मृत्यु की वकालत करने वालों ने बताया कि वह बुधवार को पर्थ में एक विमान में सवार हुए. उन्हें अंतिम विदाई देने उनके दोस्त और परिवार के सदस्य आए थे. वह स्विट्जरलैंड जाने से पहले फ्रांस में अन्य परिवार के साथ कुछ दिन बिताएंगे. उन्हें 10 मई को इच्छा मृत्यु दी जाएगी.
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से रवाना होने से पहले एबीसी प्रसारणकर्ता से कहा, ''मैं स्विट्जरलैंड नहीं जाना चाहता क्‍योंकि मैं अपने देश ऑस्‍ट्रेलिया से बेहद प्‍यार करता हूं. हालांकि वह अच्छा देश है. लेकिन आत्महत्या करने के मौके के लिए मुझे जाना होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई कानून इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं देता है. मैं इस बात से अप्रसन्न हूं.''
 
बायोएथिक्‍स क्षेत्र में इस वक्‍त यूथेनेसिया विषय पर सबसे ज्‍यादा चर्चा हो रही है.(प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

यूथेनेसिया
हाल ही में भारत में भी है. कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि हर व्‍यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है. इस संदर्भ में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर क्‍या है? ऑक्‍सफोर्ड इंग्लिश डिक्‍शनरी के मुताबिक जब कोई व्‍यक्ति असाध्‍य बीमारी से ग्रस्‍त हो जाता है और उसकी पीड़ा असहनीय होती है या वह ऐसे कोमा में होता है, जहां से उसके उबरने के चांस नहीं होते तो उसकी मृत्‍यु की चाह को पूरा करना यूथेनेसिया की श्रेणी में परिभाषित किया जा सकता है. 17वीं सदी में इस मेडिकल दशा को फ्रांसिस बेकन ने 'यूथेनेसिया' नाम दिया. उन्‍होंने इसको पीड़ा रहित सुखद मृत्‍यु कहा.
प्रकार
एक्टिव यूथेनेसिया
बायोएथिक्‍स के क्षेत्र में इस विषय पर इस वक्‍त सबसे ज्‍यादा चर्चा हो रही है. वैसे इस संबंध में विभिन्‍न देशों में अलग-अलग कानून हैं. यूथेनेसिया को भी एक्टिव और पैसिव यूथेनेसिया में विभाजित किया जा सकता है. एक्टिव(सक्रिय) यूथेनेसिया के तहत मेडिकल पेशेवर या कोई अन्‍य व्‍यक्ति जानबूझकर ऐसा काम करता है, जिससे रोगी की मृत्‍यु हो जाती है.
नैतिकता का तकाजा
दरअसल एक्टिव और पैसिव यूथेनेसिया पर लंबी बहस चल रही है. कई लोगों का यह तर्क है कि इलाज रोककर रोगी को मरने की इजाजत देना नैतिक रूप से सही है. ऐसे लोगों का यह भी तर्क है कि जानबूझकर किसी को मारना नैतिक रूप से गलत है. हालांकि कुछ लोग इसकी आलोचना करते हैं कि वास्‍तव में एक्टिव और पैसिव यूथेनेसिया एक ही बात है. ये कहते हैं कि रोगी का जरूरी इलाज नहीं करना या जानबूझकर इलाज रोक देने में कोई अंतर नहीं है.
देशों में प्रावधान
अलग-अलग देशों में इस संबंध में अलग-अलग प्रावधान हैं. बेल्जियम, कनाडा और स्विट्जरलैंड जैसे चुनिंदा देशों में ही एक्टिव यूथेनेसिया को विशेष श्रेणी में अनुमति है. इसके लिए कई शर्तें लगाई गई हैं. बेल्जियम में यह व्‍यवस्‍था है कि रोगी के आग्रह पर डॉक्‍टर उसके जीवन को समाप्‍त कर सकते हैं. लेकिन अधिकांश देशों में कई शर्तों के साथ पैसिव यूथेनेसिया की ही अनुमति है.

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