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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने आदेश में सरकारी आवासों पर कब्जा जमाए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को इन्हें खाली करने का आदेश दिया था। इसके बाद कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह ने तो बगैर किसी हील-हुज्जत के आवास खाली करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, लेकिन अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और मायावती ने इसे बचाने की कोशिशं शुरू कर दीं।
अखिलेश और मुलायम ने अपने पास लखनऊ में आवास न होने की दलील देकर 2 साल का वक्त मांगा, तो मायावती ने कहा है कि जिस बंगले में वह रहती हैं उसे पहले ही ‘कांशीराम यादगार विश्राम स्थल’ घोषित कर दिया है।
यही नहीं, मायावती ने योगी सरकार को चेतावनी भी दी है कि बंगले को खाली कराए जाने और यहां की सुरक्षा व्यवस्था हटाए जाने के बाद कोई भी अप्रिय घटना होती है तो पूरे देश की शांति व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। मायावती ने एक चिट्ठी में लिखा है कि ‘कांशीराम यादगार विश्राम स्थल’ की देखरेख के लिए वह वहां रहती हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि इस बंगले को 2011 में ही ‘कांशीराम यादगार विश्राम स्थल’ घोषित किया जा चुका है। उन्होंने कहा है कि कांशीराम जी जब भी लखनऊ आते थे तो यहीं ठहरते थे, इसलिए यह जगह दबे, कुचले एवं पिछड़े लोगों के लिए प्रेरणास्रोत का काम करती है और उनके जन्मदिन पर लाखों अनुयायी यहां आकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
इसलिए बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो ने कहा है कि यह बंगला उनके संरक्षण में ही रहने दिया जाए। फिलहाल, हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि कांशीराम एक बहुत बड़े नेता थे और दलित उत्थान में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन क्या ऐसा बड़ा नेता सिर्फ एक बंगले के होने से ही लोगों को याद रहेगा? कांशीराम अपने जनांदोलन के लिए यूं भी सदियों याद रहेंगे और जब भी दलित उत्थान की बात होगी, इस महान नेता को याद किया जाता रहेगा। अब मायावती की इस बंगले को अपने पास रहने देने की यह मांग कितनी जायज या नाजायज है, इसका फैसला तो जनता ही कर सकती है।
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