सीनाजोरी करने वालों को संरक्षण देने की मची होड़ |
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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
देश में मनमानी करने वालों की संख्या में निरंतर इजाफा होता जा रही है। राजनैतिक दलों से लेकर कथित समाजसेवियों-बुध्दिजीवियों की जामात तक ने वैधानिक कार्यों में भी अवरोध बनकर खडे होने के लिए कमर कस ली है। इजाफा-ए-वोट के नीतिगत सिध्दान्तों का अनुपालन करने वालों की भीड अब निहित स्वार्थों के लिए व्यवस्था के मापदण्डों तोडने के लिए मानवीयता का जामा पहनने लगी है। कानपुर में मां-बेटी के जलकर मरने की घटना को लेकर सर्वत्र हायतोबा मची हुई है। शासन स्तर पर घटना के लिए प्रथम दृष्टया वर्तमान अधिकारियों को दोषी मानकर उनके विरुध्द कार्यवाही भी की गई। कानपुर देहात के रूरा थाना क्षेत्रान्तर्गत आने वाले मडौली गांव में अतिक्रमण हटाने के दौरान दु:खद घटना सामने आई। दीक्षित परिवारों के आपसी विवाद और लाभ लेने की गरज से की गई शिकायतों का सिलसिला शुरू हुआ।
लम्बे समय से ग्राम सभा की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के विरुध्द की गई शिकायत पर पहली कार्यवाही 14 जनवरी को हुई जिसमें आंशिक अतिक्रमण हटाया गया था और शेष को स्वत: ही हटा लेने की समझाइश दी गई। आंशिक अतिक्रमण हटने के बाद अतिक्रमणकारियों ने उस जमीन को साम्प्रदायिक रंग देने की गरज से 18 जनवरी को शिव लिंग स्थापना हेतु चबूतरे का निर्माण कर दिया। कुल मिलाकर अतिक्रमणकारी वह शासकीय जमीन किसी भी सूरत में छोडने के लिए तैयार नहीं थे। इस स्थिति की शिकायत 27 जनवरी को की गई। यह पूरा मामला मडौली ग्राम पंचायत के गाटा संख्या 1642 का है। इस गाटा संख्या में 0.657 हेक्टेयर भूमि दर्ज है जिसमेें से लगभग 0.600 हेक्टेयर रकवे पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर रखा था। विगत 27 जनवरी को की गई शिकायत पर प्रशासनिक अमला पुन: अतिक्रमण हटाने के लिए पहुंचा।
कार्यवाही के दौरान अचानक अतिक्रमण करके बनाई गई झोपडी में से आग की लपटें निकलने लगीं। उपस्थित जन समूह ने आग बुझाने तथा आग में घिर चुकी प्रमिला दीक्षित तथा उनकी पुत्री नेेहा को बचाने का प्रयास किया परन्तु दुर्भाग्य से उन दौनों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश के कानपुर की इस आग में राजनैतिक दलों ने रोटियां सेंकना शुरू कर दीं। अनेक कथित समाजसेवियों-बुध्दिजीवियों ने अपने वक्तव्य जारी किये। बढते दवाव में वहां के वर्तमान उपजिलाधिकारी, कानूनगो सहित 9 लोगों के विरुध्द प्राथमिकी दर्ज की गई। गिरफ्तारियां की जाने लगीं। पीडित परिवार को सरकारी नौकरी, मुआवजा और सुविधायें देने की मांगें उठने वालों की लाइन लग गई। इस पूरे परिदृश्य में तीन बिन्दु उभरकर सामने आये।
पहला यह कि जब अतिक्रमण करने की आधारशिला रखी जाती है तब उत्तरदायी अधिकारी कहां होते हैं। पटवारी की नियुक्ति जिस हल्के में होती है वहां पर उसको निवास करना आवश्यक होता है ताकि रोजमर्रा की व्यवस्थाओं, समस्याओं और शिकायतों को स्थल पर ही तत्काल दूर किया जा सके। यदि कानपुर की घटना वाले स्थान पर अतिक्रमण के पहले चरण को ही नस्तनाबूत कर दिया जाता तो वर्तमान कब्जे पर काबिज रहने की स्थिति ही नहीं बनती। मगर तत्कालीन पटवारी सहित अन्य अधिकारियों के इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। हमेशा ही ऐसा ही होता है कि जब पानी सिर से ऊपर होता है या दूसरों के हित प्रभावित होने लगते हैं तभी शिकायतों का दौर शुरू होता है। ऐसे में अतिक्रमण के पहल चरण के दौरान नियुक्त तत्कालीन अधिकारियों-कर्मचारियों पर भी सेवा में उपेक्षा का मुकदमा दर्ज होना चाहिए था।
परन्तु किन्हीं खास कारणों से आज तक अतीत के कृत्यों की विस्फोटक स्थिति होते ही वर्तमान को निशाना बनाया जाता है। मडौली जैसे अनगिनत उदाहरण देश के कोने-कोने में मौजूद है। कभी रेलवे ट्रैक पर किये गये अतिक्रमण को हटाने के दौरान बेजा कब्जाधारी लामबंद होकर खडे हो जाते हैं तो कभी वन विभाग की जमीन पर अनाधिकृत ढंग से काबिज लोग हटने को तैयार नहीं होते। कहीं सडकों के फुटपाथ पर गैरकानूनी ढंग से पैर पसारने वाले उसे अपना अधिकार मान लेते हैं तो कहीं सरकारी सम्पत्ति को राजस्व विभाग में हेराफेरी करवाकर मालिकाना हक दिखा दिया जाता है। इतिहास गवाह है कि आज तक सरकारी दस्तावेजों मेें हेराफेरी करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों की कारगुजारियों का लम्बे समय बाद पर्दाफास होने पर भी उनके विरुध्द कोई कार्यवाही नहीं हुई है। कुछ मामले अपवाद के रूप में सुुुर्खियां बने परन्तु बाद के परिणामों का खुलासा आमजन के समक्ष नहीं किया गया।
दूसरा यह कि उच्चाधिकारियों के आदेश पर अतिक्रमणकारियों से जमीन खाली कराने पहुंचे अमले पर दोधारी तलवार से वार करने की अंग्रेजी नीयत आज भी जस की तस लागू है। यदि अमला बिना अतिक्रमण हटाये वापिस पहुंचता तो निश्चय ही आदेश की अवहेलना का पात्र बनकर दण्ड का भागीदार बनता और जब अतिक्रमण हटाया गया तो अचानक लगी आग के लिए दोषी ठहरा दिया गया। चोरी करने वालों की सीना जोरी करने का दुस्साहस सामने आया। आंशिक अतिक्रमण हटा तो शिव लिंग की स्थापना हेतु चबूतरे का निर्माण कर लिया गया। ताकि साम्प्रदायिकता की आड में कब्जा बना रहे। देश के प्रत्येक छोर पर साम्प्रदायिकता की आड में अतिक्रमण करने वालों की लम्बी सूची मिल जायेगी परन्तु इस ओर से शासन-प्रशासन जानबूझकर अपनी आंखें बंद किये रहता है। कबाडी की दुकानों के नाम पर कचरा एकत्रित करके महानगरों तक के मुख्य मार्गों पर कब्जाधारियों को खुलेआम देखा जा सकता है।
तीसरा यह कि सीना जोरी करने वालों को राजनैतिक दलों के अलावा कथित समाजसेवियों-बुध्दिजीवियों को खुला समर्थन मिलने से अतिक्रमणकारियों के हौसले निरंतर बुलंद होते जा रहे हैं। मानवीयता की आड में असंवैधानिक कृत्यों को अधिकार बताने वाले जहां स्वयं के नेतृत्व को स्थापित करने में लगे हैं वहीं दलगत नेता अपने आकाओं के इशारों पर इजाफा-ए-वोट का लक्ष्य साधने में जुटे हैं। ऐसे लोग कभी साम्प्रदायिकता के आधार पर वैमनुष्यता फैलाकर, फूट डालो-राज करो के सिध्दान्त की परिणति करते हैं तो कभी जातिगत मुद्दों पर हुंकार भरने लगते हैं। कुल मिलाकर वर्तमान में सीनाजोरी करने वालों को संरक्षण देने की होड मची है। किसी राज्य में चुनावी परिणाम आने वाले हैं तो किसी में निर्वाचन की आचार संहिता लगने वाली है। ऐसे में भावनात्मक बयार मेें वोट हथियाने के हथकण्डे नित नये रूप ले रहे हैं जो कि राष्ट्र हित में कदापि सुखद नहीं कहा जा सकता। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।