मानव जीवन में पहला सुख निरोगी काया का माना जाता है। यह ठीक भी है अच्छे स्वास्थ्य के लिए हम क्या कुछ करने को तैयार नहीं हो जाते। योग भी शरीर को स्वस्थ रखने में हमारी सहायता करता है। चित्र वृत्तियों के शमन को योग कहा जाता है। योग के आठ अंग हैं, चैथा अंग प्राणायाम है। प्राणायाम के लिए आवश्यक है कि आप स्वयं पर मानसिक नियंत्रण रखें।
योग शास्त्र के रचयिता महर्षि पतंजलि के अनुसार स्वाभाविक गति से चलने वाले श्वास, प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। प्राणायाम शरीर मन तथा प्राण को शुद्ध कर देता है। इसके रोजाना अभ्यास से स्नायुमंडल शुद्ध होता है और आंतरिक चेतना जागृत होती है। कहा जाता है कि ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसे प्राणायाम के द्वारा ठीक न किया जा सके।
इसे भी पढ़े :- ANI NEWS INDIA को जिला ब्यूरो / तहसील ब्यूरो / रिपोर्टरों की आवश्यकता है
मानव शरीर में अनेक नाड़ियां होती हैं जिनमें से तीन नाडियां इंड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाडियां खास हैं। इंडा जिसे चंद्र नाड़ी भी कहते हैं ठंडी होती है तथा विचारों को नियंत्रित करती है। शरीर का बायां भाग इसी नाड़ी के नियंत्रण में रहता है। पिंगला जिसे सूर्य नाड़ी भी कहते है ठंडी होती है। यह हमारी प्राणशक्ति तथा शरीर के दाएं भाग का नियत्रंण करती है। मेरूदंड के मध्य से होकर मूलाधार तक सुषुम्ना नाड़ी होती है। यह न तो गर्म होती है और न ही ठंडी, यह इंड़ा और पिंगला के बीच संतुलन स्थापित करने में सहायता करती है। प्राणायाम के द्वारा सम्पूर्ण स्नायु मंडल पर नियंत्रण किया जा सकता है, विभिन्न अंगों की दुर्बलता को दूर कर यह शरीर को शक्तिशाली भी बनाता है।
सर्वविदित है कि हम सांस लेते हैं और जिस वायु में हम सांस लेते हैं उसमें मिली हुई आक्सीजन से हम जीवनी शक्ति प्राप्त करते रहते हैं। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। इस प्रकार देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि हम सभी जाने अनजाने प्राणायाम करते रहते हैं प्राणायाम में मुख्य रूप से तीन क्रियाएं होती हैं सांस लेना, सांस छोड़ना और सांस लेने की इस क्रिया को लगन व ध्यान से अलग-अलग प्रकारों से किया जाता है तो इसे प्राणायाम कहते हैं।
इसे भी पढ़े :- यूपीपीएससी में घोटाला, सीबीआई ने दर्ज की प्राथमिकी
योग शास्त्र के रचयिता महर्षि पतंजलि के अनुसार स्वाभाविक गति से चलने वाले श्वास, प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। प्राणायाम शरीर मन तथा प्राण को शुद्ध कर देता है। इसके रोजाना अभ्यास से स्नायुमंडल शुद्ध होता है और आंतरिक चेतना जागृत होती है। कहा जाता है कि ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसे प्राणायाम के द्वारा ठीक न किया जा सके।
इसे भी पढ़े :- ANI NEWS INDIA को जिला ब्यूरो / तहसील ब्यूरो / रिपोर्टरों की आवश्यकता है
मानव शरीर में अनेक नाड़ियां होती हैं जिनमें से तीन नाडियां इंड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाडियां खास हैं। इंडा जिसे चंद्र नाड़ी भी कहते हैं ठंडी होती है तथा विचारों को नियंत्रित करती है। शरीर का बायां भाग इसी नाड़ी के नियंत्रण में रहता है। पिंगला जिसे सूर्य नाड़ी भी कहते है ठंडी होती है। यह हमारी प्राणशक्ति तथा शरीर के दाएं भाग का नियत्रंण करती है। मेरूदंड के मध्य से होकर मूलाधार तक सुषुम्ना नाड़ी होती है। यह न तो गर्म होती है और न ही ठंडी, यह इंड़ा और पिंगला के बीच संतुलन स्थापित करने में सहायता करती है। प्राणायाम के द्वारा सम्पूर्ण स्नायु मंडल पर नियंत्रण किया जा सकता है, विभिन्न अंगों की दुर्बलता को दूर कर यह शरीर को शक्तिशाली भी बनाता है।
सर्वविदित है कि हम सांस लेते हैं और जिस वायु में हम सांस लेते हैं उसमें मिली हुई आक्सीजन से हम जीवनी शक्ति प्राप्त करते रहते हैं। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। इस प्रकार देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि हम सभी जाने अनजाने प्राणायाम करते रहते हैं प्राणायाम में मुख्य रूप से तीन क्रियाएं होती हैं सांस लेना, सांस छोड़ना और सांस लेने की इस क्रिया को लगन व ध्यान से अलग-अलग प्रकारों से किया जाता है तो इसे प्राणायाम कहते हैं।
इसे भी पढ़े :- यूपीपीएससी में घोटाला, सीबीआई ने दर्ज की प्राथमिकी
प्राणायाम की कुछ विधियां इस प्रकार हैं:-
मस्त्रिका प्राणायाम:- इसमें पूरी शक्ति से इंजन की तरह सांस लेना और छोड़ना चाहिए। यह क्रिया पहले बाईं नासिका तथा फिर दायीं नासिका से करें। इससे श्वास नली और नाक पूर्णतया खुल जाते हैं और रक्त में गर्मी आ जाती है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम:- इसके लिए कमर को सीधा रखकर आंखें बंद करके बैठें फिर दाईं ओर के नासाद्वार अंगूठे से बंद करके पूरा सांस बाहर निकालें और बाएं नासाद्वार से सांस भरें, तीसरी अंगुली से बाईं नासिका को बंद कर सांस अंदर रोक लें (आंतरिक कुभंक) करें। आप स्वाभाविक तरीके से जितनी देर सांस रोक सकते हों केवल उतनी ही देर सांस रोकें। अब दांया अगूंठा हटाकर गर्दन को थोड़ा आगे झुकाकर सांस बाहर निकाले, एक-दो क्षण सांस रोकें फिर गर्दन उठाकर दाएं नासाद्वार से सांस भरे (पूरक करें)। नासाद्वार बंद कर श्वास को रोकें फिर बाएं नासाद्वार से धीरे से सांस निकाल दें (रेचक करें)।
इस पूरी क्रिया की पांच-सात बार दोहराएं। आरंभ में पूरक कुभंक व रेचक का अनुपात 1ः2ः2 रखें अर्थात् यदि 5 सेकेंड सांस भरने में लगते हों तो 10 सेकेंड सांस रोके और 10 सेकेंड में सांस निकालें। आंतरिक कुभंक से आक्सीजन फेफड़े के आंतरिक छिद्र तक पहुंचकर रक्त के विकार को शरीर से बाहर कर देती है इसलिए आंतरिक कुभंक के अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। इस क्रिया से रक्त शुद्ध होता है तथा फेफड़े स्वस्थ व सक्रिय रहते हैं।
शीतली प्राणायाम:- इस क्रिया में मुंह खोलकर जीभ को दोनों ओर में मोड़ कर (नलीनुमा बनाकर) सांस अन्दर खींचे (पूरक) फिर मुंह बंदकर कुछ क्षण रूककर नाक से बाहर निकाल दें। इस क्रिया को पांच दस बार दोहराएं इससे शरीर में ठंडक आती है।
सूर्यभेदी प्राणायाम:- दाएं हाथ की सबसे बड़ी उगुंली से बाएं नासाद्वार को बंद कर दाएं नासाद्वार से लंबी सांस भरें फिर कुंभक करके दाईं नासिका से ही धीरे-धीरे श्वास निकाल दें। इसे कई बार दोहराएं।
भ्रामरी प्राणायाम:- दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों कान बंद कर लें तथा दोनों हाथों को ऊपर रखें। कुहनी ऊपर उठाए रखें। अब पूरा सांस भरकर कुछ क्षण कुंभक करें और भौरे की तरह गुंजन करते हुए धीरे-धीरे लंबा करते हुए रेचक करें। इस क्रिया को चार-पांच बार दोहराएं। इस क्रिया में गुंजन से जो कंपन पैदा होता है वह मस्तिष्क तथा स्नायु मंडल को शांत करता है।
अग्निसार क्रिया:- यह क्रिया पाचन को ठीक रखती है। इसमें श्वास को पूरी तरह बाहर निकालकर पेट को कई बार अंदर-बाहर करें। इस क्रिया को दो-तीन बात करें।
उज्जाई प्राणायाम:- यह क्रिया गल ग्रंथि तथा स्नायुमंडल को प्रभावित करती है। जिस प्रकार सोया हुया व्यक्ति खर्राटे लेता है उसी प्रकार गले को दबाकर खर्राटे से सांस लें और सांस छोडें। इसे पांच सात बार दोहराएं। इससे उत्पन्न कंपन लाभदायक होते हैं। समग्र रूप में देखें तो प्राणायाम फेफड़ों को मजबूत करता है, उनका लचीलापन बढ़ाता है जिससे शरीर को अधिक से अधिक आक्सीजन मिले जिसका उपयोग शरीर के विकारों को बाहर निकालने में होता है। इससे मस्तिष्क के स्नायुमंडलों पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे मस्तिष्क संबंधी सभी विकार दूर हो जाते हैं।
आंख, कान, गला आदि अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए प्राणयाम सबसे अच्छा तरीका है। इससे लीवर, गुर्दे, आंत आदि में रक्त परिभ्रमण की गति तेज होती है जिससे विकार दूर होते हैं तथा इन अंगों की कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है। प्राणायाम के द्वारा हम शरीर की विभिन्न नाड़ियों के बीच संतुलन भी स्थापित कर सकते हैं। प्राणायाम का मन से घनिष्ठ संबंध है। प्राणायाम एक प्रकार से श्वसन क्रियाओं का प्राणायाम है जिसे प्रातरूकाल शुद्ध स्वच्छ और शांत वातावरण में करना चाहिए। आज हम तनाव और घबराहट में जी रहे हैं, प्राणायाम इस व्यस्त और कृत्रिम जीवन कुप्रभावों से बचने में जरूर आपका मददगार साबित होगा।
मस्त्रिका प्राणायाम:- इसमें पूरी शक्ति से इंजन की तरह सांस लेना और छोड़ना चाहिए। यह क्रिया पहले बाईं नासिका तथा फिर दायीं नासिका से करें। इससे श्वास नली और नाक पूर्णतया खुल जाते हैं और रक्त में गर्मी आ जाती है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम:- इसके लिए कमर को सीधा रखकर आंखें बंद करके बैठें फिर दाईं ओर के नासाद्वार अंगूठे से बंद करके पूरा सांस बाहर निकालें और बाएं नासाद्वार से सांस भरें, तीसरी अंगुली से बाईं नासिका को बंद कर सांस अंदर रोक लें (आंतरिक कुभंक) करें। आप स्वाभाविक तरीके से जितनी देर सांस रोक सकते हों केवल उतनी ही देर सांस रोकें। अब दांया अगूंठा हटाकर गर्दन को थोड़ा आगे झुकाकर सांस बाहर निकाले, एक-दो क्षण सांस रोकें फिर गर्दन उठाकर दाएं नासाद्वार से सांस भरे (पूरक करें)। नासाद्वार बंद कर श्वास को रोकें फिर बाएं नासाद्वार से धीरे से सांस निकाल दें (रेचक करें)।
इस पूरी क्रिया की पांच-सात बार दोहराएं। आरंभ में पूरक कुभंक व रेचक का अनुपात 1ः2ः2 रखें अर्थात् यदि 5 सेकेंड सांस भरने में लगते हों तो 10 सेकेंड सांस रोके और 10 सेकेंड में सांस निकालें। आंतरिक कुभंक से आक्सीजन फेफड़े के आंतरिक छिद्र तक पहुंचकर रक्त के विकार को शरीर से बाहर कर देती है इसलिए आंतरिक कुभंक के अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। इस क्रिया से रक्त शुद्ध होता है तथा फेफड़े स्वस्थ व सक्रिय रहते हैं।
शीतली प्राणायाम:- इस क्रिया में मुंह खोलकर जीभ को दोनों ओर में मोड़ कर (नलीनुमा बनाकर) सांस अन्दर खींचे (पूरक) फिर मुंह बंदकर कुछ क्षण रूककर नाक से बाहर निकाल दें। इस क्रिया को पांच दस बार दोहराएं इससे शरीर में ठंडक आती है।
सूर्यभेदी प्राणायाम:- दाएं हाथ की सबसे बड़ी उगुंली से बाएं नासाद्वार को बंद कर दाएं नासाद्वार से लंबी सांस भरें फिर कुंभक करके दाईं नासिका से ही धीरे-धीरे श्वास निकाल दें। इसे कई बार दोहराएं।
भ्रामरी प्राणायाम:- दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों कान बंद कर लें तथा दोनों हाथों को ऊपर रखें। कुहनी ऊपर उठाए रखें। अब पूरा सांस भरकर कुछ क्षण कुंभक करें और भौरे की तरह गुंजन करते हुए धीरे-धीरे लंबा करते हुए रेचक करें। इस क्रिया को चार-पांच बार दोहराएं। इस क्रिया में गुंजन से जो कंपन पैदा होता है वह मस्तिष्क तथा स्नायु मंडल को शांत करता है।
अग्निसार क्रिया:- यह क्रिया पाचन को ठीक रखती है। इसमें श्वास को पूरी तरह बाहर निकालकर पेट को कई बार अंदर-बाहर करें। इस क्रिया को दो-तीन बात करें।
उज्जाई प्राणायाम:- यह क्रिया गल ग्रंथि तथा स्नायुमंडल को प्रभावित करती है। जिस प्रकार सोया हुया व्यक्ति खर्राटे लेता है उसी प्रकार गले को दबाकर खर्राटे से सांस लें और सांस छोडें। इसे पांच सात बार दोहराएं। इससे उत्पन्न कंपन लाभदायक होते हैं। समग्र रूप में देखें तो प्राणायाम फेफड़ों को मजबूत करता है, उनका लचीलापन बढ़ाता है जिससे शरीर को अधिक से अधिक आक्सीजन मिले जिसका उपयोग शरीर के विकारों को बाहर निकालने में होता है। इससे मस्तिष्क के स्नायुमंडलों पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे मस्तिष्क संबंधी सभी विकार दूर हो जाते हैं।
आंख, कान, गला आदि अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए प्राणयाम सबसे अच्छा तरीका है। इससे लीवर, गुर्दे, आंत आदि में रक्त परिभ्रमण की गति तेज होती है जिससे विकार दूर होते हैं तथा इन अंगों की कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है। प्राणायाम के द्वारा हम शरीर की विभिन्न नाड़ियों के बीच संतुलन भी स्थापित कर सकते हैं। प्राणायाम का मन से घनिष्ठ संबंध है। प्राणायाम एक प्रकार से श्वसन क्रियाओं का प्राणायाम है जिसे प्रातरूकाल शुद्ध स्वच्छ और शांत वातावरण में करना चाहिए। आज हम तनाव और घबराहट में जी रहे हैं, प्राणायाम इस व्यस्त और कृत्रिम जीवन कुप्रभावों से बचने में जरूर आपका मददगार साबित होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें