डा. रवीन्द्र अरजरिया |
सहज संवाद / डा. रवीन्द्र अरजरिया
सत्य और अंध-विश्वास में बहुत अन्तर होता है। वर्तमान में इसे विभिन्न कसौटियों परखा जाता है। विज्ञान सम्मत, तर्क सम्मत और कारक सम्मत प्रमाणित किया बगैर एक बडा वर्ग सत्य को मान्यता नहीं देता है। यह मान्यता आधुनिक युग में यत्र-तत्र-सर्वत्र अपना अधिपत्य जमाये बैठी है। हमारा चिन्तन इसी दिशा में चल रहा था कि फोन की घंटी बजी। उठाया तो बुंदेलखण्ड के जाने-माने आर्केटेक्ट प्रदीप जैन की चिर-परिचित आवाज गूंजने लगी।
उन्होंने मिलने की इच्छा जाहिर की। हमने भी तत्काल आमंत्रण दे डाला। वे अगले ही पल हमारे निवास की घंटी बजा रहे थे। पता चला कि उन्होंने घर के बाहर से ही फोन लगाया था। एक शरारत भरी मुस्कुराहट समेटे उन्होंने ड्राइंग रूम में प्रवेश किया। वे हमारे मकान के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। आशियाने का निर्माण उन्हीं की देख-रेख में हुआ था। चाय के साथ स्वल्पाहार के लिए नौकर को बोलने के बाद हमने अपने मस्तिष्क में उमड रहे विचारों से उन्हें अवगत कराते हुए वास्तु के पुरातन सिद्धान्तों को आज की मान्यताओं के परिपेक्ष में विश्लेषित करने की चुनौती दे डाली। एक क्षण के लिए तो वह अवाक रह गये।
आशा के विपरीत बातचीत का सिलसिला सामने आते ही किंकर्तव्यविभूण की परिभाषा उनके ललाट पर दिखने लगी। अब उनकी लोकप्रियता के साथ-साथ प्राप्त की गई बी.ई., बी.आर्क. जैसी डिग्रियां भी दाव पर लग गयी। चिन्तन, चिन्ता और चित्त की मनोदशा से बाहर आकर उन्होंने अपने को सहज किया और विश्लेषक की भूमिका का निर्वहन करने लगे। उन्होंने बताया कि बृह्माण्ड में सूर्य एक स्थिर और आदर्श ग्रह है जिससे दो ही तरह की किरणे निकलती है। सूर्योदय से लेकर लगभग दस बजे तक इन्फ्रारेड किरणें निकलती हैं जो स्फूर्ति, उत्साह और पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं जब कि दस बजे से लेकर पूरा दिन निकलने वाली किरणों को अल्ट्रावायलेट कहते हैं।
यह दूसरी तरह की किरणें थकान देने वाली, घातक और बैक्टेरिया पैदा करने वाली होतीं है। इसी तरह जल, नभ और थल का विशेष परिस्थितियों में प्रभाव उसके समुच्चय के अनुरूप होता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि इसे उत्तर और दक्षिण दिशाओं की शक्तियों के प्रभावों से प्रतीक रूप में समझा जा सकता है। इस दिशाओं में चुम्बकीय किरणों का प्रभाव सघनीकृत होता है। वे लोह तत्वों को सीधा अपने अधिपत्य में लेकर उनमें आवेश पैदा कर देते हैं। इसी से शयन करने की दिशा का निर्धारण किया जाता है और काया को निरोगी रखा जाता है। जीवन को प्रभावित करने वाले दो कारक होते हैं।
व्यक्ति की व्यक्तिगत ऊर्जा अर्थात उसका अपनी ऊर्जा चक्र और स्थान की ऊर्जा अर्थात उसकी स्थिति के अनुरूप बनने वाला ऊर्जा चक्र अपने समुच्चय से एक अदृश्य रहने वाली शक्ति का निर्माण करते हैं। इसी को वास्तु कहते हैं। जल को, समुद्र में आने वाले ज्वार भाटे की क्रिया से समझा जा सकता है। अष्टमी और चतुर्थी को इनकी आवृतियों का अन्तर चन्द्रमा की स्थिति के कारण होता है और यह प्रमाणित करता है कि जल को नभ के क्रियाशील अदृश्य कारक सीधा प्रभावित करते हैं। इसी तरह थल को, दिशा विज्ञान के आधार पर नभ के वायु मण्डलीय दवाव के सिद्दान्तों को सामने रखकर विश्लेषित किया जा सकता है।
इसमें स्थान की बनावट, उसकी स्थिति और आसपास के प्रभावी तत्वों को भी दृष्टिगत रखना पडता है। वास्तु के वैदिक सिद्धान्त आज के परिपेक्ष में तो क्या प्रत्येक देश, काल और परिस्थितियों को प्रभावित करने में सक्षम रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इसके कई सूत्र तो अभी भी शोध की तराजू पर कसे जाने बाकी हैं। उनकी गूढता को सरलता में बदले बिना व्यवहारिक स्वरूप का उदय होना सम्भव नहीं होगा। विज्ञान की सीमा से भी परे जाकर वास्तु की व्याख्या करने की आवश्यकता है जिसे आदि ग्रन्थों की गहराइयों में ही ढूढा जा सकेगा।
स्थान और व्यक्ति की ऊर्जा की अनुशासनात्मक शक्ति ही सफलता की कुंजी होती है। जीवन की जटिलताओं का समाधान वास्तु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अभी बातचीत का दौर चल ही रहा था कि नौकर ने चाय के साथ स्वल्पाहार लाकर सेन्टर टेबिल पर सजा दिया। स्वल्पाहार की सुगन्ध ने संवाद की गहनता पर विजय प्राप्त की और हम सोफे से उठकर टेबिल के चारों और पडी कुर्सियों पर जा बैठे। अभी चाय की चुस्कियों के मध्य ही प्रदीप जी का फोन घनघना उठा। उनके किसी क्लाइंट का फोन था।
वे चौंक पडे, उन्हें सागर रोड पर एक नवनिर्मित हो रहे भवन के निरीक्षण के लिए जाना था। रास्ते में हमारा आशियाना था सो टटोलते चलने की नियत से आ गये और छिड गया एक ऐसा मुद्दा जिसकी ओर हर किसी की जिग्यासा होती है। उन्होंने जल्दी-जल्दी चाय समाप्त की और जाने की इजाजत मांगी। वे तो चले गये परन्तु हम वास्तु के तिलिस्म में अपने को फंसा महसूस करने लगे। उनके सूत्र हमें कहीं न कहीं इस दिशा में और ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाध्य करने लगे। इस बार बस इतना ही। अगले हफ्ते एक नयी शक्सियत के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए खुदा हाफिज।
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