नागदा में प्रदूषण के लिए गठित जांच दल द्वारा शिकायतकर्ता को दिए गए निजी सैंपल की जांच रिपोर्ट शिकायतकर्ता को हुई प्राप्त |
ब्यूरो चीफ नागदा, जिला उज्जैन // विष्णु शर्मा : 8305895567
नागदा जिला उज्जैन, मध्यप्रदेश में स्थित ग्रेसिम इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (स्टेपल फाइबर डिवीजन) में दिनांक 07/01/2020 को नागदा एवं आसपास स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार ओद्यौगिक इकाइयों के संबंध में गठित 9 विभागों की जांच समिति द्वारा असंगठित मजदूर कांग्रेस के प्रदेश संयोजक अभिषेक चौरसिया को जांच के दौरान निजी जांच हेतु प्रदान किए गए सीलबंद सैंपल की जांच रिपोर्ट में कई गंभीर तथ्य सामने आए हैं ।
उक्त सैंपल की जांच अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप फ्रांस सरकार से अधिकृत लेबोरेट्री में करवाई गई हैं । समस्त सैंपल को जांच हेतु भारत से अंतरराष्ट्रीय कोरियर सेवा यू.पी.एस. एवं फेडेक्स के माध्यम से फ्रांस भेजा गया था । जिसमें लगभग दो माह के पश्चात जांच रिपोर्ट तैयार होकर अाई हैं ।
उक्त सैंपल की जांच के लिए मध्यप्रदेश शासन के अधिमान्य पत्रकार श्री कैलाश सनोलीया एवं मध्यप्रदेश सेवादल कांग्रेस के पूर्व संगठन मंत्री योगेश शुक्ला के माध्यम से फ्रांस के स्थानीय पत्रकारों से भी इस संबंध में सहयोग प्राप्त किया गया था।
पूर्व में गठित 9 सदस्यीय जांच समिति के विरूद्ध अभिषेक चौरसिया द्वारा पहले से ही आपत्ति दर्ज करवाई गई थी और दोबारा से जांच की मांग की गई थी। क्योंकि उक्त जांच समिति द्वारा शिकायतकर्ता को अपना पक्ष नहीं रखने देने और तय स्थानों से सैंपल नहीं लेने पर जांच समिति पर आपत्ति जताई गई थी ।
मजदूरों के लिए ग्रेसिम उद्योग में उपलब्ध आर.ओ. वाटर गंभीर प्रदूषित :
लैबोरेट्री की जांच रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख हुआ हैं कि ग्रेसिम इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड में कार्यरत मजदूरों के लिए पेयजल हेतु उपलब्ध आर.ओ. वॉटर में सल्फेट, फ्लोराइड, जिंक, आर्सेनिक, कैडमियम आदि के अंश पाए गए हैं । जो कि मानव जीवन को प्रभावित करने का कार्य करते हैं । जहां सल्फेट से चर्म रोग, नेत्र रोग, खोपड़ी से संबंधित रोग, पथरी रोग, फ्लोराइड से हड्डी संबंधित रोग एवं आर्सेनिक से भोजन अपच एवं किडनी पर प्रभाव पड़ता है। उक्त आर.ओ. वॉटर मजदूरों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव छोड़ रहा है जिसके भविष्य में भयावह परिणाम उद्योग में कार्यरत मजदूरों के स्वास्थ्य पर पड़ना तय हैं ।
रिपोर्ट के अनुसार उद्योग का पेयजल एक धीमा जहर हैं । क्योंकि अगर 1 लीटर पानी में जितने मिलीग्राम अंश इन केमिकलों की मात्रा पाई गई हैं अगर एक व्यक्ति द्वारा प्रतिदिन 8 घंटे कार्य के दौरान अगर 6 से 7 लीटर पानी भी उपयोग किया जा रहा है तो वह उनके शरीर को आंतरिक रूप से कितना नुक्सान पहुंचाने का कार्य कर रहा हैं । क्योंकि उक्त पेयजल स्त्रोत का उपयोग मजदूरों द्वारा लंबे समय से किया जा रहा है । नियमानुसार एक स्वास्थ्य शरीर के लिए मानव शरीर को प्रतिदिन 7 से 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती हैं।
चंबल नदी में जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ग्रेसिम उद्योग -
अभिषेक चौरसिया ने बताया कि जांच रिपोर्ट में ग्रेसिम इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (स्टेपल फाइबर डिवीजन) के वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के मुख्य बिंदु से लिए गए वॉटर सैंपल में भी सल्फेट की मात्रा 2452 मिलीग्राम/लीटर पाई गई हैं और जिंक की मात्रा 0.73 मिलीग्राम/लीटर पाई गई हैं अर्थात मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार ग्रेसिम उद्योग द्वारा प्रतिदिन चंबल नदी में 475 घनमीटर/घंटा यानी कुल 11400 कि.ली./प्रतिदिन दूषित पानी उपचार के पश्चात निस्तारण किया जाता है । जिससे कि उदाहरण के लिए अगर चंबल नदी में सल्फेट 2452 mg/l एवं जिंक 0.73 mg/l का गुणा प्रतिदिन निस्तारण किए जाने वाले कुल 11400 किलोलीटर पानी से किया जाए तो जितना गंभीर प्रदूषित रसायनयुक्त जल ग्रेसिम उद्योग द्वारा प्रतिदिन चंबल नदी में छोड़ा जा रहा हैं उससे यह स्पष्ट हैं कि चंबल नदी के प्रदूषण में ग्रेसिम उद्योग की अहम भूमिका हैं ।
ग्राम परमारखेड़ी के समीप स्थित चंबल नदी के जल में भी सल्फेट की मात्रा बहुत ज्यादा पाई गई -
जांच रिपोर्ट में ग्राम परमारखेड़ी के पास से चंबल नदी में से एकत्रित किए गए जल के सैंपल में भी सल्फेट की मात्रा 3267mg/l पाई गई हैं जो कि बहुत अधिक पाई गई है जिसके वजह से ही आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगो में चर्म रोग, हड्डी रोग, नेत्र रोग, खोपड़ी से संबंधित बीमारियों का प्रभाव दिन प्रतिदिन बड़ता जा रहा हैं । जिसके प्रभाव से पूर्व में दिनांक 24/01/2020 को ग्राम पंचायत परमारखेड़ी में आयोजित करवाए गए विशेष चिकित्सा शिविर में भी चर्म रोग, नेत्र रोग एवं दिव्यांग मरीजों की संख्या अधिक पाई गई थी।
अभिषेक चौरसिया ने बताया कि उन्हें दिनांक 04/02/2020 को ग्रेसिम उद्योग के यूनिट हेड के. सुरेश को भेजे गए नोटिस की प्रतिलिपि भी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई जिसमें भी उद्योग में जांच के दौरान जांच दल द्वारा पाई गई विभिन्न खामियां उजागर हुई हैं ।
- 1) उद्योग में कार्बन डाई सल्फाइड प्लांट में कार्बन डाई सल्फाइड एवं हाइड्रोजन सल्फाइड की अत्यधिक गंध पाई गई ।
- 2) उद्योग में सल्फर का भंडारण खुले में पाया गया जिससे अत्यंत दुर्गंध महसूस हुई।
- 3) उद्योग के ऑनलाइन रियल टाइम मॉनिटरिंग डाटा का डिस्पले बोर्ड पर्यावरण निगरानी केंद्र में प्रदर्शित नहीं पाया गया ।
- 4) उद्योग के कार्बन डाई सल्फाइड प्लांट की रख रखाव की व्यवस्था खराब पाई गई ।
- 5) उद्योग में चल रहे निर्माण कार्यों से निकला सी एंड डी वेस्ट अत्यधिक मात्रा में खुले में डाला गया हैं ।
- 6) उद्योग द्वारा चंबल नदी में निस्तारण किए गए जल में टीडीएस, सल्फेट एवं क्लोराइड की मात्रा पाई गई जिससे चंबल नदी के किनारे स्थित कुंआ, हैडपंप आदि के जल की गुणवत्ता प्रभावित हुई हैं ।
अभिषेक चौरसिया ने बताया कि उक्त मामले को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की उनकी मंशा सिर्फ नागदा एवं चंबल नदी के किनारे स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में गंभीर जल प्रदूषण की मार झेल रहे आम जनमानस के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना हैं । और इस रिपोर्ट सहित कुछ अन्य दस्तावेजों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में ग्रेसिम उद्योग के चेयरमैन श्री कुमार मंगलम बिड़ला एवं ग्रेसिम उद्योग की पूरी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के विरूद्ध रिट पिटीशन दाखिल करने का कार्य प्रगति पर हैं और आगामी सप्ताह में ग्रेसिम उद्योग के द्वारा किए गए कुछ गंभीर धांधली के तथ्य दस्तावेज़ सहित मीडिया के समस्त सार्वजनिक किए जाएंगे ।
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