दवा कीमतों को लेकर मोदी सरकार इस महीने ले सकती है बड़ा फैसला |
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इस महीने के खत्म होने से पहले देश में दवाओं की कीमतें तय करने की प्रक्रिया में व्यापक बदलाव हो सकते हैं। इस बदलाव के लिए सरकार द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में दवा उत्पाद के लिए एक नए प्राइस इंडेक्स को लागू करने की बात शामिल है। इस इंडेक्स की वजह से देश में बिकने वाली सारी दवाओं की कीमतें निर्धारण करने के लिए न्यूनतम मानदंड बनाए जाएंगे। इसमें उन दवाओं को भी शामिल किया जाएगा जो फिलहाल दवा कीमतें निर्धारण के अंतर्गत नहीं आती हैं।
अभी तक सरकार जनहित से संबंधित लगभग सभी दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती रहती है। इस समय 850 आवश्यक दवाओं की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण है। दवाओं की कीमतें निर्धारित करने वाली संस्था नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग चैलेंज अथॉरिटी (एनपीपीए) सालाना होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) के तहत दवाओं की कीमतों में संशोधन करती रहती है। अन्य सभी दवाओं के लिए कंपनियों को यह इजाजत है कि वह साल में 10 प्रतिशत से ज्यादा मूल्य नहीं बढ़ा सकती हैं।
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, इस प्रस्तावित व्यवस्था के अंतर्गत केंद्र की योजना सभी दवाओं को नए फार्मास्युटिकल इंडेक्स के साथ जोड़ने की है। दवा निर्माताओं को सालाना दवा की कीमतों में बढ़ोत्तरी करने की इजाजत है लेकिन यह इजाफा केवल इंडेक्स के मुताबिक ही होंगी। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, यह प्रस्ताव आखिरी चरण में है और फार्मास्युटिकल विभाग को जून में इसके बारे में सूचित किया जाएगा। यह प्रस्तावित इंडेक्स ना केवल डब्ल्यूपीआई के आधार पर कीमतों के निर्धारण में बदलाव लाएगा बल्कि गैर-अनुसूचित दवाओं की कीमत भी इसी हिसाब से तय की जाएंगी।
यह प्रस्ताव सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग के सिफारिशों के बाद लाया जा रहा है जिसने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 में बदलाव की बात कही थी। एक बार लागू हो जाने के बाद यह नई व्यवस्था सारी दवाओं की कीमतों का निर्धारण करना शुरू कर देगी। वर्तमान कीमत निर्धारण व्यवस्था के तहत एक लाख करोड़ रुपये के घरेलू फार्मास्युटिकल बाजार में से केवल 17 फीसदी ही सीधे तौर पर सरकारी कीमत निर्धारण के अधीन आते हैं। वॉल्यूम के हिसाब से देखें तो सरकार बिकने वाली सारी दवाओं में से केवल 24 फीसदी दवाओं की कीमतों पर ही नियंत्रण करती है।
अभी तक सरकार जनहित से संबंधित लगभग सभी दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती रहती है। इस समय 850 आवश्यक दवाओं की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण है। दवाओं की कीमतें निर्धारित करने वाली संस्था नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग चैलेंज अथॉरिटी (एनपीपीए) सालाना होलसेल प्राइस इंडेक्स (डब्ल्यूपीआई) के तहत दवाओं की कीमतों में संशोधन करती रहती है। अन्य सभी दवाओं के लिए कंपनियों को यह इजाजत है कि वह साल में 10 प्रतिशत से ज्यादा मूल्य नहीं बढ़ा सकती हैं।
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, इस प्रस्तावित व्यवस्था के अंतर्गत केंद्र की योजना सभी दवाओं को नए फार्मास्युटिकल इंडेक्स के साथ जोड़ने की है। दवा निर्माताओं को सालाना दवा की कीमतों में बढ़ोत्तरी करने की इजाजत है लेकिन यह इजाफा केवल इंडेक्स के मुताबिक ही होंगी। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, यह प्रस्ताव आखिरी चरण में है और फार्मास्युटिकल विभाग को जून में इसके बारे में सूचित किया जाएगा। यह प्रस्तावित इंडेक्स ना केवल डब्ल्यूपीआई के आधार पर कीमतों के निर्धारण में बदलाव लाएगा बल्कि गैर-अनुसूचित दवाओं की कीमत भी इसी हिसाब से तय की जाएंगी।
यह प्रस्ताव सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग के सिफारिशों के बाद लाया जा रहा है जिसने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 में बदलाव की बात कही थी। एक बार लागू हो जाने के बाद यह नई व्यवस्था सारी दवाओं की कीमतों का निर्धारण करना शुरू कर देगी। वर्तमान कीमत निर्धारण व्यवस्था के तहत एक लाख करोड़ रुपये के घरेलू फार्मास्युटिकल बाजार में से केवल 17 फीसदी ही सीधे तौर पर सरकारी कीमत निर्धारण के अधीन आते हैं। वॉल्यूम के हिसाब से देखें तो सरकार बिकने वाली सारी दवाओं में से केवल 24 फीसदी दवाओं की कीमतों पर ही नियंत्रण करती है।
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