बेबस मजदूर, बेफिक्र सरकार, क्या IAS दीपाली रस्तोगी पर कार्यवाही होंगी? |
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- विजया पाठक
लॉकडाउन की भीषण त्रासदी में कोई सबसे ज्यादा प्रभावित है तो वह है मजदूर l लॉकडाउन की अवधि में 2 माह पूर्व होने को है l लेकिन देशभर में लाखों की संख्या में मजदूर अपने घरों से दूर है और अपने घर वालों से दूर है l ऐसे में राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अपने राज्य के मजदूरों को वापस लाने में नाकाम है और जो लोग वापस आ गए उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया है l
अब मजदूरों के हालात बदतर हो गए हैं l उनसे उनका रोजगार छिन गया है l मेहनतकश मजदूरों को काम नहीं है l आजीविका चलाने के लिए भी पैसे नहीं है l लाखों की संख्या में मजदूर बेबस लाचार हैl वहीं विभिन्न प्रदेशों की सरकारें बेफिक्र हैं l सरकार को इनकी सुध नहीं हैं आईएएस अफसरों को मजदूरों की फिक्र करने की जिम्मेदारी सौंपी है l ये अफसर कागजी कार्रवाई कर सरकार को निश्चिंत कर रही है l इसका जीताजागता प्रमाण दीपाली रश्तोगी हैं l जिनकी उदासशीलता के चलते 16 आदिवासी मजदूर रेल की पटरी से मर गए l
जमीनी स्तर पर मजदूरों की स्थिति क्या है इन्हें किन किन परिस्थिति और परेशानियों से जूझना पड़ रहा है l उस हकीकत से अफसर कोसों दूर हैं l अफसरों को मजदूरों की जिम्मेदारी सौंपना, सरकार की बहुत बड़ी गलती है l सरकारों को पुनः विचार करना चाहिए l
मजदूर इस देश की रीढ़ हैं l देश की सरकारों को इनके योगदान और मेहनत को नकारा नहीं जा सकता है l आज की स्थिति में सारा मजदूर वर्ग बहुत बुरे वक्त से गुजर रहा है l अपनी आजीविका के लिए दर दर भटकते रहे मजदूर अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर अब इन्हें अपनी जन्मभूमि तक नसीब नहीं हो रही है l लॉकडाउन की परिस्थिति में ऐसे हजारों मजदूर है जो पैदल ही अपने घरों को निकल पड़े l पैदल मजदूरों में बूढ़े, बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं l पैदल चलने वाले मजदूरों की तस्वीरें झकझोर करने वाली है l
हमारे समाज और सरकार को आईना दिखाने वाली है l लॉकडाउन में मजदूर वर्ग को छोड़कर धीरे-धीरे सब वर्ग सामान्य होते जा रहा है l लेकिन मजदूर वर्ग आज भी भीषण त्रासदी से जूझ रहा है लड़ रहा है l अपनी मजबूरी के आंसू बहा रहा है सवाल फिर भी सरकारों से है जो इनकी हालात और हाल पर आंखें मूंदे हुए हैं देश के विकास और उन्नति में दिए योगदान को भुलाया जा रहा है सरकारों को अब प्राथमिकता में इनके जीवन में आए संकट पर विचार करना चाहिए l यही वह समय है जहां मजदूरों को सरकार की सहायता की बहुत आवश्यकता है l
पुलिस प्रताड़ना और समाज की अवहेलना ने इन्हें अकेला कर दिया है l सरकारें आज भले ही दावा कर रही हैं कि मजदूरों के लिए सरकार भरपूर प्रयास कर रहे हैं लेकिन हकीकत में तस्वीरें कुछ अलग हीं बया कर रही है l आज भी हजारों मजदूर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं l इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है पलायन और प्रताड़ना के बीच प्रशासन इन्हें हीन भावना से ही देख रहा है l मजबूरी में रोजी रोटी के लिए कानून तोड़ रहा है क्या इसे उल्लंघन कहा जा सकता है? बिल्कुल नहीं !
समय रहते प्रशासन इनकी मजबूरी को समझता तो आज शायद यह स्थिति निर्मित ही नहीं होती l प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से अपील है कि वह मजदूरों के पलायन और पालन-पोषण में हस्तक्षेप करें सिर्फ प्रदेश सरकारों के भरोसे छोड़कर इनका कल्याण नहीं होने वाला है, इन्हें समाज का हिस्सा मानकर इन्हे भी देश की मुख्य धारा में लाना होगा l यही वह समय है जब मजदूरों को आपकी सहायता की जरूरत है l
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