पहला जन्मदिन मनाया था, बेटा अब तो चौदह महिने का हो गया है : एक कहानी डॉक्टर की जुबानी |
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- विष्णु शर्मा की कलम से // मो.8305895567
डॉ.कमल सोलंकी नागदा के शासकीय अस्पताल में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के पद पर शु-शोभीत है।
डॉ.कमल कहते है कि कोरोना को हराना है तो प्रयास निरंतर करने होंगे। शासन के नियमों का पालन भी करना होंगे। तभी कोरोना से लड़ा जा सकता है। यह लड़ाई किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष की नही है यह तो सभी के सहयोग और योगदान से ही जीती जा सकती है। सभी के सहयोग और साथ की आवश्यकता है।
डॉ. सोलंकी की पारिवारिक पृष्ठभूमि
बातों ही बातों मे जब डॉ.कमल से परिवार के बारे मे पुछा तो कमल बहुत ही शांत लहजे मे बताते है, कि परिवार से मिले तीन माह के लगभग हो चुके है। बेटे का पहला जन्म दीन मनाया था तब मिला था, अब तो बेटा चौदह माह का हो गया है। शहर मे जब से कोरोना संक्रमण फैला है तभी से घर नही जा पाया। परिवार पहले साथ ही था अब इंदौर मे है।
डॉ.कमल का पैत्रक निवास स्थान निमाड़ के बड़वानी जिले मे है। पिता नौकरी के वजह से इंदौर आ कर बस गये। पिता श्री मांगीलाल सोलंकी पी. डब्लू. डि. विभाग इंदौर मे कार्यरत है। माता श्रीमती कुन्दना सोलंकी घरेलू कामकाजी महिला है। और काफी समय से बिमार चल रही है। मांगीलाल जी के दो पुत्र हुवे जिनमे कमल बड़े है ओर छोटा पुत्र राहुल है। कमल का जन्म 13 फरवरी 1985 को हुआ ।
पिता ने दोनो बेटों को बड़ी ही मेहनत से डॉक्टर बनाया था। पर होनी को कूछ ओर ही मंजूर था ।परिवार मे संकट के बादल छाये ओर छोटे बेटे राहुल जो एम एस सर्जन थे उन्होने रीवा मेडिकल कॉलेज मे होस्टल के कमरे मे खुदखुशी कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। माता पिता और कमल पर दुखो का मानों पहाड़ टुट पड़ा हो । इस हादसे से उबरने मे परिवार को काफी वक्त लगा। समय का चक्र अपनी गती से चलता रहा ओर धीरे धीरे दुखों के बादल छटने लगे।
कमल को घर के पड़ौस मे रहने वाली रितु चौहान से कब प्यार हो गया पता ही नही चला । प्यार परवान चढा ओर इस बात की जानकारी दोनो परिवारों को जब लगी तो परिवार ने सहमती देते हुए 26 मार्च 2012 को पारिवारिक माहौल मे दोनो को परिणय सूत्र मे बांध कर विवाह कर दिया। विवाह बड़े ही धूम धाम से संपन्न हुआ। परिवार और बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।
डॉ. कमल एवं पत्नी रितु का एक चौदह माह का पुत्र कृतुल है बेटे का जन्म 02 मार्च 2019 को इंदौर मे हुवा। अब परिवार मे दादा दादी का पोता आ गया था। डॉ.कमल अब एक बच्चे के पिता ओर पत्नी रितु माता बन चूकी थी। समय का पहिया घूमता रहा ओर बेटा एक वर्ष का हो गया। जो पूरे परिवार का दुलारा ओर डॉ. कमल का लाड़ला बन गया।
कोरोना की वजह से डॉक्टर कमल नही जा पाये घर
नागदा मे जब से कोरोना संक्रमण फैला है घर नही जा सका। बेटा एक वर्ष का हुवा तो उसका जन्म दीन मनाया था अब तो चौदह महिने का हो गया है। परिवार मे माता पिता बुजुर्ग हो चुके है माँ की तबियत भी ठीक नही है माँ के पैरों मे तकलिफ है बेटा छोटा है पत्नी को बेटे ओर माता पिता का अकेले ही ख्याल रखना पड़ रहा है। परिवार की परेशानी तो है। किन्तु परिवार से उपर अभी फर्ज निभाना जरुरी है।
कोरोना से फैलने वाले संक्रमण को नकारा नही जा सकता यह बहुत ही विकट परिस्थित है यहा रहना जरुरी है। लोगो के फोन आते है फला व्यक्ति बाहर से आया है उस व्यक्ति को यह परेशानी हो रही है पूरा देश इस बीमारी से जुझ रहा है शासन ओर प्रसाशन कोरोना की रोकथाम के लिये लगातार प्रयास कर रहा है यह सब आसान नही है बीमारी किस रूप मे हमारे सामने आयेगी हमे नही पता। यहाँ स्वास्थ की दृष्टि से रहना भी जरुरी है।
परिवार से रोज फोन पर बात हो जाती है मन का बोझ हल्का हो जाता है परिवार की चिंता तो रहती ही है यह सब कहते हुवे डॉ.कमल थोडे भाऊक हो जाते है।
क्योकिं परिवार तो परिवार ही होता है, माता- पिता ,पत्नी ओर बेटे से मिलने की लालसा आखें भर देती है...........।
कमल से डॉ.कमल सोलंकी तक का सफर
डॉ.कमल बताते है कि मेरी प्राथमिक शिक्षा कई जिलों मे टुकड़ों-टुकड़ों मे हुई। पहली कक्षा से हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई के लिये कई स्कूल बदले है हर तीन वर्ष मे नया स्कूल,नये अध्यापक नये दोस्त। इन स्कूलों के बदलाव के पीछे का कारण पिता का हर तीन वर्ष मे स्थानांतरण होना मुख्य वजह थी। पिता श्री मांगीलाल सोलंकी पी डब्लू डी विभाग मे है जिसकी वजह से उनका स्थानांतरण जहाँ होता वहाँ मेरा भी स्थानांतरण होता ।स्कूल बदलते तो दोस्त भी बदलते। इसकी बजह से पढ़ाई मे दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई के लिये चार जिलों के चार स्कूल बदले। मंदसौर ,उज्जैन,भोपाल और फिर इंदौर। हायर सेकेंडरी की परीक्षा 2002 मे उतीर्ण करने के बाद 2003 मे मेडिकल कालेज ग्वालियर मे एम.बी.बी.एस. के लिये दाखिला लिया। अपनी मेहनत ओर अथक परिश्रम से 2009 मे डॉक्टर की उपाधि ले कर डॉक्टर कमल सोलंकी बन गये। पिता ओर परिवार ने जो सपना अपने कमल के लिये देखा था वह डॉ.कमल ने पूरा कर दिखाया था।
डॉ. कमल की स्वास्थ सेवाएं हुई प्रारंभ
डॉ.कमल सोलंकी ने 2009 में एम बी बी एस की उपाधि प्राप्त करने के बाद अनिवार्य ग्रामींण सेवा ताजपुर के स्वास्थ विभाग मे पदस्थ किया गया किन्तु ताजपुर मे डॉक्टर की उपलब्धता होने की वजह से 10 मई 2010 को सिविल अस्पताल नागदा में स्थानांतरण कर दिये गये। तभी से नागदा सिविल अस्पताल मे अपनी सेवायें दे रहे है। 2012 मे डॉ.कमल एक वर्ष मे लिये नागदा सिविल अस्पताल छोड़ कर बॉम्बे हॉस्पिटल इंदौर चले गये थे। सितम्बर 2012 मे पुन: नागदा आगये और अपना कार्यभार संभाला लिया।
22 मई 2019 को डॉ.कमल सोलंकी को ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के पद पर सुशोभीत किया गया। जो डॉ.कमल आज तक बखुबी निभा रहे है।
कमियों के कारण होती है दिक्कतें
डॉ.सोलंकी कहते है कि सिविल अस्पताल नागदा पिछ्ले एक वर्ष से डॉक्टर्स की कमी से जुझ रहा है। स्टाफ की कमी के साथ ही डॉक्टरों की संख्या मे उतार चढ़ाव मरीजों के लिये परेशानियों का कारण बन जाता है जो चिंता का विषय है। इस सभी की वजह से मन आहत होता है। डॉ.कमल बताते है की जब ज्वाईन किया था तो पहले चार माह बहुत ही कठिनाइयों वाले गुजरे है लगता था यहा क्यो आ गये।
किन्तु आज समय बदल गया है अब तो आदत हो गई है जो है जैसा है उसी से काम चलाना है डॉक्टर का कर्तव्य है रोगियों को सही उपचार देना। उनकी बीमारी को दुर करना ओर रोगी को रोगों से मुक्त कर उन्हे स्वास्थ रखना। आज डॉक्टर कमल सोलंकी अपने मृदुल ओर शांत स्वभाव से नागदा के सम्मानीय कोरोना योद्धाओं मे सुमार हो चुके है। यह उनकी मेहनत ओर लगन का ही प्रतिफल है।
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