एंबुलेंस न मिलने से 39 दिन का बच्चा तड़पता देख लाक डाउन में चला रहे फ्री एम्बुलेंस |
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- शुजालपुर से हेल्प फार यू की एंबुलेंस ने 42 दिन में 81 फेरे लगाकर 70 गंभीर मरीजों को दी सेवा
- दवा, सर्जिकल सामान, रक्त आपूर्ति भी मुफ्त कर रही
- फोटो एम्बुलेंस से मरीज भोपाल जाते हुए
शुजालपुर। सरकारी मदद से मुंबई के निजी अस्पताल में ऑपरेशन के लिए भर्ती शुजालपुर के 24 दिन के बच्चे के निर्धन परिवार को लाक डाउन में शुजालपुर वापस आने सरकारी एंबुलेंस न मिली तो इसी टीस में शुजालपुर के रोगी सेवा केंद्र हेल्प फॉर यू ने मुफ्त एंबुलेंस सेवा शुरू कर दी। 42 दिन में 70 गंभीर मरीजों को इंदौर, भोपाल, मुंबई तक सेवा देकर यह एम्बुलेंस बिना किराया लिए गरीब मरीजों को अस्पताल तक ले जाने व वापस लाने के लिए दिन-रात दौड़ रही है।
शुजालपुर के पोल फैक्ट्री इलाके में रहने वाले मजदूर दिनेश प्रजापति अपनी पत्नी सीमा व 24 दिन के बच्चे की हार्ट की सर्जरी कराने सरकारी मदद से स्वीकृत राशि से मुंबई गए थे। ऑपरेशन के बाद लाक डाउन में शुजालपुर आने मुंबई के अस्पताल ने एंबुलेंस देने से इंकार कर दिया। शाजापुर जिला प्रशासन के अफसर भी मरीज की कोई मदद नहीं कर पाए।
ऐसे में मप्र सरकार से मानव सेवा के लिए रहीम अवार्ड प्राप्त निशुल्क रोगी सेवा केंद्र हेल्प फार यू ने इस मासूम व परिजन को घर लाने ₹34 हजार एंबुलेंस किराए के लिए बच्चे के पिता के खाते में ईपेमेंट से भिजवाये। इस एंबुलेंस में उज्जैन जिले के भी दो और परिवार बच्चो के साथ वापस आये। इस घटना से परेशान परिवार को देख हेल्प फार यू के पुरुषोत्तम पारवानी ने विधायक इन्स्थादर सिंह परमार के संरक्षण में एंबुलेंस सेवा शुरू करने की ठान ली। कैंसर के मरीज को रेडियो व कीमोथेरेपी, किडनी के मरीज को डायलिसिस व फिशचुला बनवाने तथा थैलेसीमिया के मरीज को रक्त चढ़ाने के लिए 31 मार्च, 1 अप्रैल को किराए की एंबुलेंस से शुरुआत की गई।
इसके बाद समाजसेवी अरुण कयाल ने अपने अशोक नगर निवासी चिकित्सक भाई के नर्सिंग होम की एंबुलेंस चालक सहित इस सेवा कार्य के लिए मुफ्त सुलभ करा दी। जननी एक्सप्रेस योजना में रेफर होने वाली प्रसूताओ को प्रसव के बाद केवल 30 किलोमीटर की दूरी तक घर छोड़ने के नियम की वजह से परिजनों को लाक डाउन में वापस घर आने साधन नहीं मिलता। ऐसी जच्चा-बच्चा को भी यही एम्बुलेंस मुफ्त सेवा दे रही है। एसडीएम शुजालपुर प्रकाश कसबे ने बताया कि इस फ्री एम्बुलेंस के कारण सरकारी एम्बुलेंस पर काफी दबाव कम हुआ व लोगो को उसका बेहतर लाभ मिल रहा है ।
42 दिन में 70 मरीज लाभान्वित
42 दिन में अब तक यह एंबुलेंस 81 फेरे लगाकर 70 मरीजों को लाभान्वित कर चुकी है। मरीज को अस्पताल ले जाने व वापस लाने के साथ ही यह एंबुलेंस जो मरीज अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं, उनके परिजनों का खाना भी प्रतिदिन लेकर भोपाल अलग-अलग अस्पताल जाती है।
3 परिवार परिजनों के लिए दे रहे भोजन
सुबह 8 बजे से लेकर रात 12 बजे तक कई बार तीन-तीन बार भोपाल जाने व वापस आने के दौरान सभी मरीजों, परिजनों, एंबुलेंस स्टाफ व पूर्व में अस्पताल जाकर भर्ती हुए मरीजों के लिए घर का बना हुआ शुद्ध शाकाहारी भोजन देने के लिए रिंकू शर्मा, मोहित चावड़ा, अभिषेक के परिवार सेवा दे रहे हैं।
सर्जरी का सामान व दवाएं भी मुफ्त ला रही
गंभीर रोग की दवाएं जो शुजालपुर में उपलब्ध नहीं होती, उन्हें भोपाल के दवा बाजार से कम दाम में खरीदकर मरीजों को लाकर होम डिलीवर करने की सेवा भी एंबुलेंस कर रही है। भोपाल केमिस्ट एसोसिएशन के कई सदस्य फ्री एंबुलेंस के पर्चो की दवाई प्राथमिकता से उपलब्ध करा रहे हैं। कैंसर की दवा 40% डिस्काउंट पर मरीजों को लाकर दी गई। मानसिक रोगियों की दवाएं सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी स्वयं के पैसों से खरीद कर एंबुलेंस सेवा को मरीजो को देने भेज रहे हैं। सर्जरी का सामान भोपाल से लाकर 24 मरीजों की सर्जरी में भी यह सेवा सहभागी बनी है। विभिन्न जांच के सेम्पल भी एंबुलेंस मुफ्त में भोपाल पहुंचा रही है।
दुरुपयोग न हो इसलिए सीसीटीवी
एंबुलेंस में मरीज, परिजन, दवाई, सर्जिकल सामान के अलावा कुछ भी नहीं लाया जा सकता। जितने सदस्य जाते हैं उनकी सूची रात को ही प्रशासन को मोबाइल नंबर सहित उपलब्ध कराई जाती है। सीसीटीवी कैमरा ऑनलाइन लगा कर एंबुलेंस की गतिविधि की निगरानी की जाती है। एंबुलेंस चालक मनीष वर्मा बीते 40 दिन से मुफ्त वाहन चालक की सेवा दे रहा है।
ईंधन के लिए भी सहयोगीयों की टीम
42 दिन में 18 हजार किलोमीटर का सफर तय कर चुकी है। खराब होने पर श्रद्धा परमार ने अपनी शादी की सालगिरह एंबुलेंस का सुधारकार्य का खर्च वहन कर मनाई। पेट्रोल का खर्च अलग-अलग सहयोगी उठा रहे हैं, जिसमें मुख्य रुप से विजय शर्मा, अरुण कयाल, अनूप राठी, अजय शाह, रिक्की छाबड़ा, सर्वेश पोखरना, अनिल परमार, विकास सोमानी, राजकुमार थावानी, अनुष्का पाठक प्रमुख है। जिस दिन इधन का कोई दानदाता नहीं मिलता, सेवा शुरू करने वाले पुरुषोत्तम इसका खर्च उठाते हैं।
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