महिला शिक्षक का मुंडन : बड़ी बात है कमलनाथजी शिक्षा व्यवस्था पर कमलनाथ का कुठाराघात |
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♦ विजया पाठक
भारतीय समाज और संस्कृति में महिलाओं का मुंडन बेहद दुखद और मार्मिक समझा जाता है लेकिन अगर यही महिलाएं अपना मुंडन सरकार की वादाखिलाफी के चलते कराएं तो राजनीति का शर्मनाक चेहरा सामने आता है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले 73 दिनों से सरकार को नियमितीकरण का वादा याद दिलाने के लिए धरने पर बैठे अतिथि शिक्षक ने तमाम रोती हुई महिलाओं के बीच अपना मुंडन कराया। इस दौरान 73 दिनों से धरने पर बैठी सभी महिलाओं की आंखें नम थी। बालों को मुंडाते हुई यह महिला और उसे देखकर रोती हुई तमाम महिलाओं का यह दृश्य राजा राममोहन राय के जमाने का नजर आ रहा होगा जब पति की मृत्यु के बाद महिलाओं का मुंडन किया जाता था। अब 21वीं सदी है, भारत में लोकतंत्र हैं और तस्वीरों में आज भी वैसा ही दृश्य है, जब महिला समाज के दबाव में नहीं बल्कि सरकार की वादाखिलाफी के चलते मुंडन करवा रही हैंं।
मध्यप्रदेश की सियासी जमीन पर 15 सालों से बेघर रही कांग्रेस। मौका था विधानसभा चुनाव का। उन्हें उन सबसे से वोट चाहिए थे जो बीजेपी सरकार से नाराज थे। ऐसे में कांग्रेस ने और उस वक्त के अध्यक्ष कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों को वादा किया था कि सरकार में आएंगे तो नौकरी को नियमित किया जाएगा। ऐसे में चुनाव के दौरान अतिथि विद्वानों ने उनके परिवार और समर्थकों ने जमकर कांग्रेस के पक्ष में वोट किया। उम्मीद थी सरकार आएगी नियमित होंगे। सरकार भी आई, साल भर बीत गया। न नियमतिकरण हुआ बल्कि सरकार ने अतिथि विद्वानों को नौकरी से निकालना शुरू कर दिया। नतीजे में अतिथि विद्वान सरकार को वादा खिलाफी याद दिलाने के लिए 73 दिनों से भोपाल में बैठे रहे। जब सरकार को उनकी आवाज नहीं सुनाई दी तो मजबूर हो गई महिला मुंडन के लिए।
अतिथि शिक्षकों के मामले में कमलनाथ सरकार को बैचेन कर सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब सरकार को अपने अहंकार को त्यागकर अतिथि शिक्षकों की सुध ले लेनी चाहिए अन्यथा ऐसा न हो कि इस मामले में कमलनाथ सरकार संकट में आ जाए।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के शाहजहानी पार्क में चल रहा अतिथि विद्वानों का प्रदर्शन आज 73वें दिन अचानक सुर्खियों में आ गया। छिंदवाड़ा की महिला अतिथि विद्वान ने भोपाल आकर मुंडन कराया और मुख्यमंत्री कमलनाथ को इसका दोषी बताते हुए इस्तीफे की मांग की। मुंडन कराने वाली महिला का नाम डॉ. शाहीन खान है। वह कटनी के पालू उमरिया शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी पढ़ाती हैं एवं छिंदवाड़ा की रहने वाली हैं। सरकार के पास आईफा अवार्ड्स कराने के लिए पैसा है, फिल्मों को टैक्स फ्री करने के लिए पैसे हैं लेकिन वचनपत्र में किए गए वादे को पूरा करने के लिए सरकार बार-बार वित्तीय संकट का हवाला दे रही है।
जधानी में 735 दिन के बाद फिर से ऐसा हुआ, जब शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ीं महिला कर्मचारी मांगों के लिए इस तरीके से विरोध जाहिर किया है। दरअसल, अतिथि विद्वान नियमितीकरण की मांग को लेकर 72 दिन से राजधानी भोपाल में धरने पर बैठे हैं। इनमें से कइयों ने अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी अपने साथ रखा है। इस ठंड में लगातार धरना देने से कई की तबीयत खराब हो चुकी है। एक अतिथि विद्वान की जहां धरना स्थल से जाने के बाद मौत भी हो चुकी है, तो वहीं दो हफ्ते पहले छतरपुर के अतिथि शिक्षक संजय कुमार ने नियमितीकरण न होने के गम में आत्महत्या कर ली। वहीं बीजेपी इस मुद्दे पर कांग्रेस पर तंज कसते नजर आई। बीजेपी ने कहा कि महिलाओं के लिए केश त्यागने का मतलब है उसका सब कुछ खत्म हो गया। अतिथि विद्वान का मुंडन पूरे प्रदेश की महिलाओं का अपमान है, इसका खामियाजा सरकार को भुगतना होगा।
सत्ता पक्ष के नेताओं की आपसी राजनीति में अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण की मांग का निराकरण उलझता हुआ दिखाई दे रहा है। जिससे अतिथि शिक्षक प्राण गंवाकर भी इनकी राजनीति के शिकार हो रहे हैं। बावजूद इसके कोई ठोस निर्णय लेने के अब तो स्वयं सत्ता पक्ष के अतिथि शिक्षकों की मांगों के निराकरण को लेकर आपस में ही उलझकर इस ओर से ध्यान भटकाने का काम करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में टीकमगढ़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में हलचल शुरू हो गई है। सत्याग्रही अतिथि शिक्षकों ने सरकार के खिलाफ लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन कर अपनी बात रखने की कोशिश की जिसमें उन्होंने सकारात्मक जवाब भी दिया है। अतिथि शिक्षकों ने मुख्यमंत्री, मंत्री गोविंद सिंह एवं ज्योतियादित्य सिंधिया के बयान में तर्क देते हुए कहा है कि सरकार या तो अपना वचन भूल रही है या तो वचन पूरा करने में सरकार मुकरने लगी है। नियमितीकरण के लिए कोई ठोस नीति सरकार नहीं बना पा रही है।
सरकार अतिथि शिक्षकों के साथ सियासी खेल खेल रही है। सरकार मांगों को राजनीति की भेंट चढ़ाना चाह रही है। इस बात को भूल रहे हैं कि 12 नवंबर 2018 को उन्होंने सरकार बनने के 3 महीने के अंदर नियमित करने का वचन दिया था। वचन पत्र के बिंदु क्रमांक 47.23 और 16.28 में जिसका उल्लेख भी किया गया है। ठोस निर्णय लेना छोड़कर आज वह 5 साल का हवाला दे रहे हैं। 5 साल का हवाला देना सरकार के लिए बेईमानी से कम नहीं है। 2 अतिथि शिक्षकों की हुई मौत का कारण स्पष्ट है कि अतिथि शिक्षक आर्थिक रूप से अत्यधिक परेशान तो चल ही रहे हैं। शारीरिक, सामाजिक और मानसिक रूप से भी जरूरत से ज्यादा तंगी जिंदगी जी रहे हैं। हाल ही में एक अतिथि शिक्षक छतरपुर से सुरेंद्र पटेल ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
वहीं दूसरा अतिथि शिक्षक राजगढ़ जिले से था जिसका स्कूल से वापस आते वक्त मोटर बाइक से दुर्घटना होने से उनकी मौत हो गई है। सत्याग्रही अतिथि शिक्षकों दिवंगत हो चुके साथियों को श्रद्धांजलि देते शपथ ली है कि सरकार के द्वारा जारी शोषण से मुक्ति पाने अब जंग अंतिम दम तक जारी रहेगा। निश्चित रूप से मानसिक रूप से अतिथि शिक्षक बहुत ही ज्यादा प्रताड़ित हैं। गुरुओं का आदर सनातन परम्परा का अभिन्न अंग है। पर कमलनाथ जी शायद यह भूल गये है। और पाश्चात को सभ्यता की तर्ज पर बॉलीवुड को तबज्जों देकर गुरुओं को त्राहिमाम करने पर मजबूर करना कमलनाथ को म.प्र में अनाथ न बना दे।
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