वो भिख नही आपसे मदद मांग रहे हैं.... तस्वीरें खिंचवा कर मजाक मत उड़ाइये |
ब्यूरो चीफ नागदा, जिला उज्जैन // विष्णु शर्मा : 8305895567
नागदा। औद्योगिक क्षेत्र नागदा मे भोजन वितरण के साथ ही भोजन सामग्री का भी वितरण समाज सेवियो द्वारा किया जा रहा है किन्तु क्या हम चंद लाईक्स और कमेंट के कारण किसी की भावनाओं को ठेस भी पहुचा सकते है। हम मदद कर जिनकी तस्वीरें सोशल मीडिया या समाचार पत्रो के माध्यम से पोस्ट कर रहे है। दरअसल वो भिखारी नही जरुरतमंद है।
हमारे पुरखे एक बात कहा करते थे कि अगर सिधे हाथ से किसी की मदद करो तो उल्टे हाथ को भी पता नही चलने दो की सिधे हाथ ने किसी की मदद की है ।
इसकी वजह है अपने हाथ से वही मदद करना चाहते है जो दुनिया मे अपना नाम करना चाहते है।आप बुलाकर किसी को सामने से मदद करने से आप उसकी गरीबी का अपमान करते है । उसे यह एहसास दिलाते है कि वह गरिब है, मोहताज है, मुफ़लिस है। इस वक्त कोरोना वायरस के कारण लाखों लोग बेघर हैं। लाखों लोग ऐसे हैं जो दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं। लाखों लोग टेंटों पर पड़े हुए हैं। ऐसा नहीं है कि ये लोग अपनी इच्छा से ऐसी ही जिंदगी गुजार रहे हैं। ये त्रासदी है जिसने सबसे सब कुछ छीन लिया है। ऐसे वक्त में लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं और सेल्फी खिंचवा रहे हैं। उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। ये बुरा नहीं है लेकिन शायद हम भूल जाते हैं कि वो गरीब नहीं जरूरतमंद हैं।
मदद के बाद आखिर दिखावे की जरूरत क्या ?
खाने के एक पैकेट के साथ कई-कई लोग तस्वीर खिंचवाते हैं और फिर उसको जगह-जगह पोस्ट करते हैं। ऐसा इसलिए ताकि समाज में उनको मददगार के रूप में देखा जाए। उनकी तारीफों मे कसींदे पढ़े जाए। समाज में एक ओहदा हो। लेकिन ऐसा करके आप सामने वाले की बेबसी का मजाक उड़ा रहे हो। भगवान ने अगर किसी को इस लायक बनाया है कि वो किसी की मदद कर सकता है तो करना चाहिए। ये जाहिर भी नहीं होने देना चाहिए कि आपने मदद की है। ऐसा बहुत बार होता है कि कई बार कोई जरूरदमंद इस डर से आप से मदद के लिए भी नहीं कहेगा।
खुद्ददारी यहां की आवाम पर रची बची है।
ये वक्त सबको गले लगाकर भरोसा देने का
ये समय है कड़े इम्तिहान का। इस इम्तिहान को सबको साथ लेकर पास करना है। आज एक बहुत बड़ा तबका जो रोज कुआं खोदता है और पानी पीता था, वो सबसे ज्यादा टूट गया है। उसका कहना है कि वो कोरोना से तो क्या मरेगा लेकिन गरीबी उसे पहले लील लेगी। बात सच है। हमने देखा है कि कैसे लाखों लोग पैदल ही अपने गांव की ओर चलने लगे। उनसे पूछा गया तो उन्होंने बोला कि अब हम यहां क्या करे। किराए का कमरा है हर चीज मोल की है। काम है नहीं। पैसा कहां से आएगा। और बिना पैसे के शहर में एक दिन भी बसर नहीं होता।
अब ये लोग वहां रूकते तो भूख से तड़प जाते। और यहां आ गए तो वायरस के संक्रमण के कारण टेंटों पर दिन गुजारना पड़ रहा है। फिलहाल ये वक्त है एकजुट होकर इस भयंकर बीमारी को हराने का। सबकी मदद करने का एक दूसरे का सम्मान करने का।
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