आशा कार्यकर्ता भर्ती घोटाले धोखाधड़ी के बर्खास्त मास्टरमाइंड को बना दिया CMHO ने डीपीएम, हाईकोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाई |
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जिला ब्यूरो चीफ जबलपुर // प्रशांत वैश्य : 79990 57770
कोरोना जैसी महामारी को दरकिनार कर पहले चहेतों की भर्ती तो कर लें
जबलपुर । आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती में खुलेआम भ्रष्टाचार करने के आरोपित जिस डीसीएम को तत्कालीन कलेक्टर के आदेश पर बर्खास्त किया गया था, उसे डीपीएम (जिला कार्यक्रम प्रबंधक) पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी गई।
पद पर काबिज होते ही अपने चहेतों की भर्ती करना कोई नई बात नहीं होती लेकिन भर्ती के दौरान बहुत सी बातों को ध्यान में रखा जाता है। मसलन कौन है ? क्या है ? कैसा है ? किस छवि का है?
और फिर हालातों को देखकर अपनों की भर्ती की जाती है। जबलपुर शहर ने ऐसे नजारे कई बार देखे होंगे। लेकिन वर्तमान की जो स्थितियां चल रही है उसे देख कर तो लगता है कि जैसे अपनों के मोह में आकर धृतराष्ट्र..... दुर्योधन के लिए कुछ भी कर जाने को तैयार है। भले ही प्रजा को उसकी कोई भी कीमत चुकानी पढ़े।
ऐसा ही एक किस्सा इन दिनों जिला स्वास्थ्य विभाग में देखने को मिल रहा है। जहां पद संभालते ही.... अपने चहेतों की भर्ती करने का वो जुनून हावी हुआ। कि सारे नियम कानून दरकिनार कर दिए गए।
कहाँ का है मामला
यह पूरा वाक्या मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले का है। जहां कोरोना संकट काल के दौरान जिम्मेदार अधिकारी जनता के स्वास्थ्य सेवाओं को दरकिनार कर। चहेतों की भर्ती का खेल ......खेल रहे है।
जबलपुर शहर के हालात बद.. से..बदतर होते जा रहे है। कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा तीन सैकड़ा के पास पहुंच रहा है। लेकिन इधर जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी अपने चहेतों की पदस्थापना में व्यस्त दिखाई दे रहे है।
फिर चाहे वह चहेता... दागी ही क्यों न हो.. किसे फर्क पड़ता है। यहां तो जंगल राज है...और फिर जिसके हाथ मे लाठी होगी..भैंस तो उसी की कहलाएगी न.....
आशा कार्यकर्ता भर्ती घोटाले के दोषी को CHMO ने किया पदोन्नत
हमारे पाठकों को आशा कार्यकर्ताओ की भर्ती का घोटाला तो बखूबी याद ही होगा। जिसमें प्रवीण सोनी नाम के एक अधिकारी (डीसीएम) ने अपने हुनर का इस्तेमाल करते हुए आशा कार्यकर्ताओं से भर्ती के नाम पर मोटे कमीशन की वसूली की थी। बाद में घोटाले का भंडाफोड़ होने पर प्रवीण सोनी (डीसीएम) को तत्कालीन कलेक्टर के आदेश पर बर्खास्त किया गया था। एवं मामले की जांच अभी भी चल रही है। ऐसे ही संदिग्घ व्यकित को जबलपुर के नए मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने पद संभालते ही उपकृत कर दिया।
घोटाले की जांच की बजाय उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे डीपीएम (जिला कार्यक्रम प्रबंधक) पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी गई।
क्या..था.? आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती का घोटाला...
जिले भर में और ग्रामीण अंचल में स्वास्थ्य सेवाओं को और भी बेहतर बनाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका अहम होती है यही कारण है की शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जानी थी।
प्रशासनिक तौर पर आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की जिम्मेदारी चयन समिति को सौंपी गई थी। समिति में सीएमएचओ, सहायक आयुक्त व स्वास्थ्य अधिकारी नगर निगम, जिला परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग, परियोजना अधिकारी डूडा, नोडल अधिकारी शहरी स्वास्थ्य को शामिल किया जाना था।
लेकिन डीसीएम के पद पर आसीन प्रवीण सोनी ने सारे नियम कानूनों को दरकिनार रखते हुए बिना किसी समिति का गठन किए खुद ही आशा कार्यकर्ताओं से कमीशन का लेनदेन कर बड़े स्तर पर उनकी भर्ती कर दी। बाद में जब इस पूरे मामले ने तूल पकड़ा तो आनन-फानन में इस पूरे मामले की विशेष जांच कराई गई जिसमें डीसीएम प्रवीण सोनी को तात्कालिक कलेक्टर ने बर्खास्त कर दिया था।
जांच रिपोर्ट में दोषी पाए गए- प्रवीण सोनी
आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती में हुए घोटाले के भंडाफोड़ के बाद आनन-फानन में तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मनीष कुमार मिश्रा ने जांच समिति का गठन किया था। जांच समिति की रिपोर्ट में प्रवीण सोनी को अपने पद का दुरुपयोग करने, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय स्तर पर विभाग की छवि धूमिल करने, आशा सहयोगी कार्यकर्ताओं से कमीशन की मांग करने एवं कारण बताओ नोटिस को नजरअंदाज करने का दोषी पाया था। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद 22 जनवरी 2020 को तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश पर सोनी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इधर, बर्खास्तगी की कार्रवाई के खिलाफ सोनी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट ने विभाग को मानव संसाधन मैन्युअल के नियम 13.3 के अंतर्गत शिकायत की जांच कर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सोनी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की न तो जांच की गई न ही कोर्ट को कार्रवाई से अवगत कराया गया।
आखिर किसके इशारे पर हो रहा यह पूरा फेरबदल
एक पुरानी कहावत है...
कि बिल्ली जब दूध पीती है तो अपनी दोनों आंखें मूंद लेती है और सोचती है कि उसे किसी ने नहीं देखा लेकिन हकीकत इसके परे ही होती है। ठीक है ऐसा ही नजारा जबलपुर के स्वास्थ्य विभाग और उनके कार्यालयों में देखा जा रहा है। लेकिन क्या जिम्मेदारों के आंखें मूंद लेने से समस्या का हल हो जाएगा...???
जानकारों की माने तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने एनएचएम के अंतर्गत उसे डीपीएम का प्रशासकीय और वित्तीय प्रभार भी सौंप दिया।
जिस व्यक्ति पर पहले भी वित्तीय अनियमितताओं और कमीशन बाजी आरोप लग चुके हो उसे पुनः वित्तीय प्रभार सौंपा जाना ... एक बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहा है।
ऐसी मंशा भी जताई जा रही है कि कहीं ना कहीं किसी बड़े लेन-देन के चलते दागी व्यक्ति को जानबूझकर इतने बड़े पद पर आसीन किया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने उसके विरुद्ध जांच के निर्देश दिए थे
प्रवीण सोनी को पदोन्नत किए जाने की खबर लगते ही स्वास्थ्य विभाग के कार्यालयों में हड़कंप सा मच गया है।जब चारों ओर से दागी व्यक्ति को पदोन्नत किए जाने का विरोध होना शुरू हुआ तो संदेह के घेरे में आए अधिकारी इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ने लगे। वर्तमान में जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की माने तो जिला कलेक्टर के निर्देश पर प्रवीण सोनी को पदोन्नत किए जाने के आदेश दिए गए हैं।
अब सवाल यह पैदा होता है कि 6 माह पूर्व जिस व्यक्ति को दोषी मानकर खुद कलेक्टर ने बर्खास्त किया हो इतना ही नहीं हाई कोर्ट ने जिस व्यक्ति के खिलाफ विभाग को मानव संसाधन मैन्युअल के नियम 13.3 के अंतर्गत शिकायत की जांच कर निर्णय लेने का निर्देश दिया हो।
ऐसे में हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रवीण सोनी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की बिना जांच कराए
एवं कोर्ट को कार्रवाई से अवगत कराया बिना....
क्या कलेक्टर महोदय किसी संदिग्ध को पदोन्नत किये जाने का आदेश पारित कर सकते है.....?????
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