सोमवार, 22 जून 2020

हमें गर्व है ऐसे पत्रकारों पर जो सरकार और जनसंपर्क के मोहताज नहीं, शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर...

[caption id="attachment_22352" align="aligncenter" width="960"]हमें गर्व है ऐसे पत्रकारों पर जो सरकार और जनसंपर्क के मोहताज नहीं, शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर...हमें गर्व है ऐसे पत्रकारों पर जो सरकार और जनसंपर्क के मोहताज नहीं, शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर...
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भोपाल से विनय जी. डेविड 9893221036

न कांग्रेस न भाजपा, न कमलनाथ न शिवराज, न पूर्व जनसंपर्क मंत्री व वर्तमान गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा न पूर्व जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा हो...? पत्रकार किसी का मोहताज नहीं...?

पत्रकारों को लॉलीपॉप दिखाकर सत्ता में आई कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में बड़े-बड़े पत्रकारों के लिए वादे किए थे सत्ता में आते ही कमलनाथ और जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा आसमान की अनंत ऊंचाइयों में उड़ने लगे इनको सत्ता में रहते हुए पत्रकार बिरादरी से एलर्जी हो गई थी, छोटे मझोले समाचार पत्र पत्रिकाओं के मालिकों को धूल चटाने के लिए जनसंपर्क के अधिकारी, आयुक्त, प्रमुख सचिव ने पत्रकारिता जगत से जुड़े साथियों के साथ जो खेल खेला वह किसी से छुपा नहीं है।
कमलनाथ सरकार के 15 माह के कार्यकाल के दौरान अपने बिलों का भुगतान प्राप्त करने के लिए दर-दर भटकते पत्रकार साथियों ने जैसे तैसे अपने परिवार का जीवन यापन किया, पत्रकारों ने एकजुट होकर बिलों के भुगतान प्राप्त करने के लिए धरना प्रदर्शन आंदोलन की भी राह पकड़ी जनसंपर्क आयुक्त पी नरहरि ने और संचालक ओपी श्रीवास्तव धरना प्रदर्शन आंदोलन स्थगित करने के लिए ने बार बार वादे किए गए जल्द निराकरण कर दिया जाएगा बिलों के भुगतान कर दिए जाएंगे परंतु उनके वादे भी झूठे निकले निराधार निकले।
पत्रकार मरता क्या नहीं करता ने कई संगठन ने एकजुट होकर कमलनाथ सरकार को आईना दिखाने बड़े आंदोलन की राह चल ही रहे थे तभी तभी उनकी सरकार मुंह के बल औंधी गिर पड़ी, भाजपा ने मीडिया का सहयोग लिया यहां तक की भाजपा अहम कड़ी माने जाने वाले डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने पत्रकारों के लिए 50 लाख का बीमा की घोषणा भी कर दी शिवराज सरकार को कोरोना काल में पत्रकारों को बीमा दिलवाने के लिए पत्र भी लिखा परंतु सत्ता में आने के बाद कुछ नहीं हुआ, पत्रकारों को बड़ा लॉलीपॉप पकड़ा दिया।
हमें गर्व है ऐसे पत्रकारों पर जो सरकार और जनसंपर्क के मोहताज नहीं, शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर...
हमें गर्व है ऐसे पत्रकारों पर जो सरकार और जनसंपर्क के मोहताज नहीं, शर्म आती है ऐसी व्यवस्था पर...
करोना काल में पत्रकारों की स्थिति दिन-ब-दिन बद से बदतर होती गई, बड़े मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर सत्ताधारी होने अपने फेवर में खूब प्रचार कराया, देश की जनता को यथार्थ सच्चाई दिखाने की जगह सत्ता के मनमाफिक खबरों को दिखाया जाता रहा, मध्यप्रदेश में पत्रकार और उसका परिवार लॉकडाउन के दौरान जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों से जूझता रहा, तब भी जनता के हित में खबरों को लेकर अपना दायित्व निभाता रहा।
कुछ पत्रकार संगठन आगे आए और उन्होंने पत्रकारों के जीवन यापन के लिए विपरीत परिस्थितियों में शिवराज सरकार से जीवन यापन हेतु एक निश्चित सहयोग राशि जारी करने की मांगे भी रखी परंतु शिवराज सरकार ने किसी की मांग को किसी भी तरह से नहीं मानी, और प्रतिदिन बड़े मीडिया के साथ रोज नए कपड़ों में नए-नए मैचिंग मास्क में भाषण देते हमारे मीडिया साथियों का लाभ लेते रहे ।
धीरे-धीरे पत्रकारों की आर्थिक स्थिति बेकाबू होती गई पत्रकार पत्रकारिता करते करते खुद भूखे मर जाता और साथ में अपने परिवार को भी भूखा मार देता। ग़ैरतमन्द हमारा पत्रकार इतना गया गुजरा नहीं कि वह विपरीत परिस्थितियों में अपना और अपने परिवार का जीवन यापन न कर सके, पत्रकारों ने जीवन यापन करने के लिए भी निर्णय ले लिए हैं। पत्रकार किसी सरकार का मोहताज नहीं, लॉलीपॉप देने वाली सरकारों को भी पत्रकारों ने अच्छी तरीके से देख लिया है और समझ लिया है वक्त के साथ गिरगिट से रंग बदलने वाले नेताओं ने भी पत्रकारों के लिये क्या किया और मीडिया से क्या लिया यह सब अच्छे से समझ आता हैं।
पत्रकारों ने पत्रकारिता के साथ-साथ अन्य कार्य भी करना जरूरी समझ लिया है, जीवन यापन के लिए अब पत्रकारिता के साथ-साथ के नए कार्यों को अंजाम दे रहे हैं गर्व है मुझे ऐसे अपने पत्रकार साथियों पर।
यू तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह मीडिया के कर्मचारियों की मदद के लिए हमेशा ताल ठोकते नज़र आते है । लेकिन लॉक डाउन के बाद मीडिया के बेहतरीन औऱ ईमानदार पत्रकार आजकल अपना परिवार पालने हर वो काम करने को तैयार है जिससे उनका परिवार पल सके ।
ये भोपाल राजधानी का पहला किस्सा नही की किसी पत्रकार ने या वीडियो जर्नलिस्ट ने अपने परिवार का भरण करने रोड़ का रुख किया हो। भोपाल के कई चैनलो में बतौर कैमरा मेन रहे एक पत्रकार की औऱ कमर तोड़ दी है और ये आपको जवाहर चौक पर सब्जी बेचते नज़र आये। जो पत्रकार पहले खबरों से अपना घर चलते थे अब वो लोगो को सब्ज़ी खिला रहे है। यह हमारे पत्रकार साथी हैं मोहित खान न्याजी जो लॉक डाउन खुलने के बाद सब्जी का ठेला लगाकर अपने परिवार को खैरात की नहीं मेहनत की रोटी खिला रहे हैं।
वही हमारा दूसरे पत्रकार साथी इन पर भी मुझे गर्व है कि वह सरकार की खैरात कि नहीं जनसंपर्क के विज्ञापनों के मोहताज नहीं। वह अपना व्यवसाय पत्रकारिता के साथ-साथ कर रहे है। यह पत्रकार साथी एक पत्रिका सर्च स्टोरी के संपादक भी हैं जिनसे भोपाल सहित मध्य प्रदेश का हर पत्रकार परिचित है इनका नाम राजेंद्र जादौन है, इन्होंने भोपाल में आलू प्याज का ठेला लगाकर साथ में पत्रकारिता करते हुए एक गैरतमंदी होने की मिसाल पेश की है
शर्म आती है...सरकार और जनसंपर्क की अनदेखी ने पत्रकारों के ऐसे हालात कर दिए है कि उन्हें अब सड़को पर उतरना पड़ रहा है ।
ये पूरी पत्रकार कौम औऱ सरकार के थोबड़े पर एक झन्नाटेदार तमाचा है जो इन बहतरीन कलमकारो और छायाकारों व चल चित्रकरो कि कद्र नही कर पाया ?
लेखक : विनय जी. डेविड पत्रकार संगठन आइसना मध्यप्रदेश के प्रांतीय अध्यक्ष है।

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