लॉक डाउन में भी मिला काम और मेहनत का दाम, छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी बने आत्म निर्भरता के पर्याय |
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जिला ब्यूरो चीफ रायगढ़ // उत्सव वैश्य : 9827482822
कोरोना संकट के बीच नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना ने सिद्ध की अपनी उपयोगिता
रायगढ़, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवन देने के लिए माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा शुरू की गई नरवा, गरवा, घुरवा एवं बाड़ी योजना ने लॉक डाउन के बीच ग्रामीणों को आर्थिक संबल देने में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के साथ ही भविष्य में मिलने वाले परिणामों की बानगी पेश कर रही है।
देश के कृषि विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने कई मौकों पर छत्तीसगढ़ की इस योजना को ग्रामीण जन जीवन की उन्नति के लिए गेम चेंजर करार दिया है। योजना के अंतर्गत भू-जल स्तर सुधार, पशुधन विकास, जैविक खाद निर्माण व बाड़ी विकास के प्रयास अब सकारात्मक परिणाम में तब्दील हो रहे हैं।
रायगढ़ जिले के बरमकेला विकासखण्ड का तकरीब 1500 की आबादी वाला गांव है हिर्री। यहाँ लॉक डाउन के बीच सोशल डिस्टेंसिंग एवं अन्य सुरक्षात्मक उपायों का पालन करते हुए नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के तहत बनाये गए गौठान में पशुधन की देखभाल के साथ जैविक खाद निर्माण और साग भाजी उत्पादन का कार्य गांव की श्री ग्राम्य भारती व लक्ष्मी महिला स्व-सहायता समूह द्वारा किया जा रहा है। दोनों समूहों में 15-15 महिलाएं शामिल हैं। इसके अलावा पास के नाले में जल संवर्धन के लिए बोल्डर चेक डैम भी बनाया गया है।
योजना से होने वाले फायदों को लॉक डाउन के परिपेक्ष्य में देखें तो हिर्री में स्व-सहायता समूह के माध्यम से 15 क्ंिवटल वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर बेचा गया जिससे किसानों को गांव में ही कृषि कार्य के लिये कम्पोस्ट खाद मिल रहा है। इसके साथ ही वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के दौरान केचुओं का संवर्धन कर उसका भी विक्रय किया जा रहा है। समूह की महिलाओं द्वारा डेढ़ एकड़ बाड़ी में भिंडी, करेला, केला और कद्दू सब्जियां उगाई जाती हैं। जिसका उपयोग इस संकट के समय निराश्रितों व जरूरतमंदों के वितरण में किया जा रहा है।
उसके बाद बची सब्जियों का विक्रय कर समूह अपनी आजीविका संवर्धन भी कर रहे हैं। बोल्डर चेक डैम बनने से गांव के भू जल स्तर में काफी सुधार हुआ है। वरना पहले गर्मी के दिनों में गाँव के हैण्ड पंप का पानी सूखने या नीचे चले जाने से अतिरिक्त पाइप डलवाने की मशक्कत करनी होती थी। लॉक डाउन होने से सुधार कार्य करवाना व पानी की कमी दोनों ही बड़ी समस्या बन सकती थी, किन्तु भू-जल स्तर में वृद्धि होने से उसमें भी राहत है। इसके साथ ही पशुधन को गौठानों में रखने से किसानों के फसल को नुकसान पहुंचाने वाले आवारा मवेशियों की समस्या भी दूर हुई है।
सुराजी गांव की संकल्पना के साथ, ग्रामीण व कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण को मूल में रख प्रारम्भ की गयी यह योजना ग्रामीण स्तर पर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रही हैं। नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी छत्तीसगढ़ के इन चार चिन्हारी ने लोगों को लॉक डाउन में काम और उनकी मेहनत का दाम दिलाकर ये झलक दिखला दी है कि आने वाले समय में इस योजना के कितने सुखद परिणाम सामने आने वाले हैं।
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