उप-चुनाव में भाजपा की हार के साथ ही सियासी चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर सत्ता में होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी क्यों हार गए। आमतौर पर उपचुनावों में सत्ताधारी दलों के प्रत्याशी की जीत होती है जबकि राजस्थान में हालत उलट हो गई है। इस चुनाव परिणाम के मायने इसलिए भी निकाले जा रहे हैं क्योंकि राजस्थान में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और करीब एक साल बाद लोकसभा चुनाव हैं। कांग्रेस के नजरिए से देखें तो देशभर में लगातार हार झेल रही कांग्रेस पार्टी के लिए उप-चुनाव के परिणाम संजीवनी साबित हो सकते हैं।
उप-चुनाव में जीत से 20 विधानसभा सीटों पर हाथ मजबूत
राजस्थान में कुल विधानसभा सीटें 160 हैं। वीरवार को उपचुनाव में कांग्रेस की जीत को सियासी माहिर इसी साल राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ जोड़कर देख रहे हैं। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में अलवर और अजमेर की 19 सीटों के साथ-साथ 1 मांडलगढ़ सीट पर भी कांग्रेस जीत हासिल कर सकती है।
अलवर-विधानसभा हलके
तिजारा, थानागाजी, किशनगढ़ बास, मुंडावर, बहरोड़, अलवर ग्रामीण, बानसूर, कठूमर, अलवर नगर, रामगढ़, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़
अजमेर-विधानसभा हलके
दूदू, किशनगढ़, पुष्कर, अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, नसीराबाद, मसूदा, केकड़ी
आइए जानें कौन-सी वे 5 वजहें हैं जिसके चलते कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार हुई
1. अयोग्य प्रत्याशी : सियासी माहिरों में चर्चा है कि अजमेर लोकसभा सीट पर भाजपा ने राम स्वरूप लांबा को प्रत्याशी बनाया था। राम स्वरूप पूर्व मंत्री सांवर लाल जाट के बेटे हैं। सांवर लाल जाट ने अजमेर में बड़ी आबादी वाले जाट समुदाय को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई थी। वह जाट समाज के कद्दावर नेता माने जाते थे। राम स्वरूप जब राजनीति में आए तो लोग उनमें सांवर लाल की छवि तलाशने लगे लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी रघु शर्मा के मुकाबले वह अपने पिता की जगह भरने में अयोग्य साबित हुए। रघु शर्मा क्षेत्र के सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। वह यहां से विधायक भी रह चुके हैं जिसके चलते उनकी यहां के लोगों के बीच अच्छी पकड़ है।
2. राजपूत समाज का खुलकर कांग्रेस को समर्थन : अजमेर सीट पर
रावण राजपूत समाज के लोग निर्णायक भूमिका में हैं। कई मुद्दों पर वसुंधरा सरकार से नाराजगी के चलते उप-चुनाव प्रचार के दौरान राजपूत समाज के कई बड़े नेताओं ने अजमेर में जातीय सभा करके रघु शर्मा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था।
3. आनंदपाल सिंह के समर्थकों का कांग्रेस को समर्थन : गैंगस्टर आनंदपाल सिंह अजमेर का ही रहने वाला था। एनकाऊंटर में उसकी हत्या के बाद से अजमेर के लोग काफी नाराज हैं। काफी मिन्नतों के बाद भी वसुंधरा सरकार ने आनंदपाल एनकाऊंटर पर कोई कदम नहीं उठाया है। इस बात से नाराज आनंदपाल सिंह के परिवार वालों ने उप-चुनाव प्रचार के दौरान सार्वजनिक रूप से रघु शर्मा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था।
4. सचिन पायलट ने जाट वोटों को किया एकजुट : राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट साल 2014 में अजमेर लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे, हालांकि उन्हें जाटों के काफी वोट मिले थे। सचिन पायलट इस बार के विधानसभा चुनाव में भी जाट वोटों को एकजुट रखने में सफल रहे। इसका सीधा फायदा कांग्रेस के रघु शर्मा को मिला।
5.‘पद्मावत’ पर भाजपा के रवैये से राजपूतों में नाराजगी : राजपूत समाज के लोगों ने फिल्म ‘पद्मावत’ का विरोध किया था। राजपूत समाज के लोग भाजपा के पारम्परिक वोटर माने जाते हैं लेकिन इस समाज के लोगों की लाख कोशिश के बाद भी वसुंधरा राजे सरकार ने इस फिल्म पर पाबंदी लगाने से मना कर दिया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस जोर-शोर से कहती रही कि भाजपा के केंद्र में होने के बाद भी सैंसर बोर्ड ने फिल्म ‘पद्मावत’ को पास कर दिया, साथ ही यह भी कहती दिखी कि भाजपा गैर-राजपूतों को तवज्जो नहीं दे रही है।
अलवर में गौहत्या और भीड़तंत्र की घटनाओं से भाजपा को नुक्सान
अलवर लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव में कांग्रेस के डा. करण सिंह यादव ने भाजपा उम्मीदवार डा. जसवंत सिंह यादव को शिकस्त दी है। कांग्रेस को 520434 जबकि भाजपा को 375520 वोट मिले हैं। अब भाजपा यहां हार के कारण तलाश रही है क्योंकि यह भाजपा की सीट थी और राजस्थान में सत्ता भी भाजपा की है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि अलवर में भाजपा की हार के पीछे गाय से संबंधित हिंसा का भी बड़ा हाथ बताया जा रहा है। इसकी वजह से मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का मौका मिला। दूसरा बड़ा कारण खुद जसवंत सिंह के उस कथित बयान को बताया जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि हिन्दू हो तो वोट मुझे देना मुस्लिम हो तो कांग्रेस प्रत्याशी कर्ण सिंह को वोट देना। यह विवादित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
इसकी वजह से भी मुस्लिम वोट एकतरफा पड़े। दिलचस्प बात यह है कि यहां पर कुल 11 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 2 मुस्लिम इब्राहिम खान और जमालुद्दीन भी शामिल हैं, जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इससे मुस्लिम वोट बंट सकते थे लेकिन इब्राहिम खान को 769 और जमालुद्दीन को 1454 वोट मिले हैं। यानी मुस्लिमों ने बिना किसी भ्रम के एक साथ वोट डाला। मेव पंचायत के संरक्षक शेर मोहम्मद ने कहा कि अलवर में गायों के नाम पर मुस्लिमों को लगातार टारगेट किया गया है। इसकी वजह से मुस्लिम वोट एकतरफा कांग्रेस को पड़ा है। 2 मुस्लिम प्रत्याशियों को भी समाज ने वोट नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि वोट बंटा तो भाजपा जीत जाएगी। यहां करीब 3.65 लाख मुस्लिम वोटर हैं।
ये भी माने जा रहे कारण
जातीय समीकरण
अलवर में भाजपा सांसद के निधन के बाद उप-चुनाव हुआ है। अलवर में जातीय समीकरण कांग्रेस उम्मीदवार करण सिंह यादव के पक्ष में नजर आया जिससे भाजपा प्रत्याशी जसवंत यादव के लिए मुकाबला मुश्किल हो गया। वहीं मांडलगढ़ कांग्रेस का गढ़ है। उप-चुनाव के दौरान प्रचार अभियान की जिम्मेदारी पूरी तरह से मुख्यमंत्री के कंधों पर रही।
किसानों की नाराजगी
हालांकि राजस्थान में भाजपा की सरकार है मगर सरकार की जीत में किसान रोड़ा बने नजर आए। सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण सरकार के खिलाफ किसानों की नाराजगी अब जगजाहिर हो गई है। राजस्थान में जहां उप-चुनाव हुए हैं वे इलाके पूरी तरह से ग्रामीण हैं और इन चुनावों में कांग्रेस की जीत में किसानों का भी योगदान रहा।
राजस्थान में क्यों हुआ उप-चुनाव
यह उप-चुनाव अजमेर से भाजपा सांसद सांवर लाल जाट, अलवर से भाजपा सांसद चांद नाथ और मांडलगढ़ भाजपा विधायक कीर्ति कुमारी का निधन हो जाने के कारण हुआ है। 29 जनवरी को हुए मतदान में तीनों क्षेत्रों के मतदाताओं ने वोट देकर 42 उम्मीदवारों के भाग्य का निर्णय ई.वी.एम. में बंद किया था। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं। साल 2014 के आम चुनाव में सभी 25 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया था लेकिन अजमेर और अलवर की सीटें खो देने के बाद भाजपा के पास 23 सीटें रह गई हैं। सियासी माहिर इन सीटों पर भाजपा की लोकसभा चुनाव में सैमीफाइनल में हार के रूप में देख रही है।