जनसंपर्क विभाग की गोपनीय विज्ञापन प्रणाली का हुआ खुलासा, बजट नही फिर भी चहेतों को बाँट रहे लाखों के विज्ञापन |
लगातार सेटिंग के विज्ञापन जारी होते रहते हैं जिनकी राशि 10-20 हजार नहीं वरना दो लाख से 20 लाख
विशेष ख़बर : विनय जी डेविड : 9893221036
भोपाल । कमलनाथ सरकार ने जब से मध्यप्रदेश में सत्ता संभाली है तब से जनसंपर्क विभाग के द्वारा काले कारनामों की सूची में लगातार विस्तार हो रहा है, बेलगाम विभाग में फर्जी वेबसाइट घोटाला, फर्जी एनजीओ को दिए जाने वाले विज्ञापन घोटाला, फर्जी अधिमान्यता घोटाला, फर्जी विज्ञापन का भुगतान घोटाला, घोटाले के नाम पर जनसंपर्क विभाग ने अपना नाम मध्य प्रदेश में अन्य विभागों की तुलना में नंबर वन कर दिया है।
जनसंपर्क विभाग के घोटाले चरम पर है कई पत्रकार संगठनों ने इस इन मुद्दों पर कई बार विभाग के आयुक्त और प्रमुख सचिव को घोटालों की लिखित शिकायतों को भी दर्ज कराया है एवं समय-समय पर ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, पत्रकारों के बीच में उठाते हुए हैं। परंतु शासन प्रशासन के किसी बात को लेकर कभी भी गंभीरता से नहीं लिया यहां तक कि कोई प्रकरण माननीय न्यायालय और माननीय हाईकोर्ट जबलपुर न्यायालय में पहुंच चुके हैं. इस प्रकरण में विभाग न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाने में माहिर है।
जनसंपर्क विभाग के घोटाले चरम पर है कई पत्रकार संगठनों ने इस इन मुद्दों पर कई बार विभाग के आयुक्त और प्रमुख सचिव को घोटालों की लिखित शिकायतों को भी दर्ज कराया है एवं समय-समय पर ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, पत्रकारों के बीच में उठाते हुए हैं। परंतु शासन प्रशासन के किसी बात को लेकर कभी भी गंभीरता से नहीं लिया यहां तक कि कोई प्रकरण माननीय न्यायालय और माननीय हाईकोर्ट जबलपुर न्यायालय में पहुंच चुके हैं. इस प्रकरण में विभाग न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाने में माहिर है।
जनसंपर्क विभाग ने 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिए जाने वाले लघु पत्रिका एवं समाचार पत्रों को विज्ञापन के नाम पर पत्रकारों के सामने इस तरीके से रोना रोया कि मध्य प्रदेश सरकार के पास पत्रकारों को देने के लिए किसी भी प्रकार का बजट नहीं है, विगत 1 वर्षों से मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग इसी तरीके से छोटे समाचार पत्र मालिकों को कहानी सुनाता रहा है यहां तक कि जनसंपर्क विभाग ने इस बार पत्रकारों की दिवाली का दिवाला की निकाल दिया।
परंतु इस सबके पीछे से जो कहानी सामने आई है वह इस प्रकार है कि सरकार नेताओं और अधिकारियों के चहेतों को लगातार लाखों रुपए के विज्ञापन गुपचुप तरीके से प्रदान किए जा रहे हैं जिसकी पत्रकार जगत में कानों कान खबर नहीं हो पा रही है। और जिन लोगों को इस बात की जानकारी है वह ऐसे मामले को उजागर करने से घबराते हैं परंतु वह भी इस प्रताड़ना से कसमसाते रहते हैं। और कई गोदी पत्रकार भी विभाग के गुन गाते रहते बाज नही आते और वह कहते हैं कि सरकार में कोई भ्रष्टाचार नहीं हो रहा है और इस प्रकार के विज्ञापन किसी को भी जारी नहीं किये जा रहे हैं विज्ञापन पूरी तरीके से बंद है।
जनसंपर्क की गोपनीय विज्ञापन वितरण प्रणाली ज्यादा दिन छुपकर नहीं रह सकती थी, और यही कारण रहा कि कई विज्ञापन आदेश आरो सोशल मीडिया में खुलेआम प्रसारित हो रहे हैं उसमें से एक विज्ञापन आदेश ( आर ओ ) की प्रतिलिपि हम अपने मध्य प्रदेश के पत्रकार साथियों के बीच में प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि वह जान ले कि बजट की कहानी के पीछे की स्थिति क्या है। लगातार सेटिंग के विज्ञापन जारी होते रहते हैं जिनकी राशि 10-20 हजार नहीं वरना दो लाख से 20 लाख की होती है।
बजट का अभाव बताकर जनसंपर्क विभाग सदैव पत्रकारिता से जुड़े साथियों का शोषण करता रहा है जबकि गोपनीय तरीके से सारी व्यवस्थाएं संचालित की जा रहे हैं क्या यह लाखों रुपयों के विज्ञापन बिना विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव, आयुक्त, संचालक संयुक्त संचालक और विज्ञापन विभाग के बिना प्राप्त किए जा सकते हैं या सब की मिलीभगत है।
बजट का अभाव बताकर जनसंपर्क विभाग सदैव पत्रकारिता से जुड़े साथियों का शोषण करता रहा है जबकि गोपनीय तरीके से सारी व्यवस्थाएं संचालित की जा रहे हैं क्या यह लाखों रुपयों के विज्ञापन बिना विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव, आयुक्त, संचालक संयुक्त संचालक और विज्ञापन विभाग के बिना प्राप्त किए जा सकते हैं या सब की मिलीभगत है।
ऐसे गुपचुप जारी होने वाले विज्ञापन के लिए पत्रकार संगठन "ऑल इंडिया स्माल न्यूज पेपर एसोसिएशन (आइसना ) विरोध करता है एवं वही मध्यप्रदेश शासन से अनुरोध करता है कि इस तरह की विज्ञापन बंद कर सभी मीडिया से जुड़े संस्थानों को विधिवत जिस तरह शिवराज शासन के कार्यकाल में विज्ञापन जारी किए जाते थे उसी तरह विज्ञापन जारी करें वरना इस तरीके से गुपचुप तरीके से गोपनीय विज्ञापन प्रणाली के खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा।
जनसंपर्क द्वारा जारी आदेश क्रमांक डी-16237 दिनांक 31 दिसंबर 2019 का ₹200000 का विज्ञापन आदेश ( आर ओ ) की प्रतिलिपि खबर के साथ प्रेषित की जा रही है उक्त ( आर ओ ) में समाचार पत्र का नाम उक्त विज्ञापन जारी किया गया है उनका नाम ""बजट नहीं फिर भी : जनसंपर्क"" का एक बॉक्स लगाकर छुपा दिया गया है ताकि उक्त संस्थान को अत्यधिक परेशानी ना हो, ( आर ओ ) इस बात की पुष्टि के लिए है कि आज भी सेटिंग के द्वारा विज्ञापन अपने चाहतों को बांटे जा रहे हैं।