गुरुवार, 18 नवंबर 2021

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006

 

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006


*मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सूचना का अधिकार अधिनियम 2006*

अधिसूचना संख्या 15-आर (जे), दिनांक 19-1-2006, म.प्र. राजपत्र भाग 4 (गा), दिनांक 17-2-2006 के पृष्ठ 161-166 mp694

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 28 की उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (सक्षम प्राधिकारी), इसके द्वारा निम्नलिखित नियम बनाते हैं: -

*1. संक्षिप्त शीर्षक और प्रारंभ।*

- (1) इन नियमों का संक्षिप्त नाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (सूचना का अधिकार) नियम, 2006 है। (2) वे आधिकारिक राजपत्र में उनके प्रकाशन की तारीख से लागू होंगे।

*2. परिभाषाएँ।*

- (1) इन नियमों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:- (ए) "अधिनियम" का अर्थ सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (2005 की संख्या 22) है; (बी) "अपील प्राधिकरण" का अर्थ है मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित; (सी) "अधिकृत व्यक्ति" का अर्थ है मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित जन सूचना अधिकारी और सहायक जन सूचना अधिकारी; (डी) "फॉर्म" का मतलब इन नियमों से जुड़ा फॉर्म है; (ई) "धारा" का अर्थ अधिनियम का एक खंड है।
(2) इन नियमों में प्रयुक्त लेकिन परिभाषित नहीं किए गए शब्दों और अभिव्यक्तियों का वही अर्थ होगा जो उन्हें अधिनियम में दिया गया है।

*3. सूचना मांगने के लिए आवेदन।*

- अधिनियम के तहत जानकारी मांगने वाला कोई भी व्यक्ति अधिकृत व्यक्ति को फॉर्म 'ए' में आवेदन करेगा और अधिकृत व्यक्ति के पास नियम 8 के अनुसार आवेदन शुल्क जमा करेगा। प्राधिकृत व्यक्ति फॉर्म 'बी' में दिए गए अनुसार आवेदन को विधिवत स्वीकार करेगा।

*4. प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा आवेदन का निपटान*।

- (1) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है, तो यह आवेदक को आवेदन पत्र को फॉर्म 'सी' में जल्द से जल्द, सामान्य रूप से पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी मामले में बाद में नहीं लौटाने का आदेश देगा। आवेदन की प्राप्ति की तारीख से तीस दिन, आवेदक को सूचित करना। जहां भी संभव हो, संबंधित प्राधिकारी के बारे में जिसे: आवेदन किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में जमा किया गया आवेदन शुल्क वापस नहीं किया जाएगा। (2) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आती है और अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध प्रतिबंधों की एक या अधिक श्रेणियों में आती है, तो अधिकृत व्यक्ति संतुष्ट होने पर फॉर्म 'डी' में अस्वीकृति आदेश जारी करेगा। ' जितनी जल्दी हो सके, आम तौर पर पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी मामले में आवेदन प्राप्त होने की तारीख से तीस दिनों के बाद नहीं। ऐसे मामलों में जमा किया गया आवेदन शुल्क वापस नहीं किया जाएगा। (3) यदि अनुरोधित जानकारी अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध एक या अधिक श्रेणियों में नहीं आती है, तो अधिकृत व्यक्ति, संतुष्ट होने पर, आवेदक को फॉर्म में जानकारी की आपूर्ति करेगा। 'ई', अपने अधिकार क्षेत्र में आता है। यदि मांगी गई जानकारी आंशिक रूप से अधिकृत व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र से बाहर है या आंशिक रूप से अधिनियम की धारा 8 और 9 में सूचीबद्ध श्रेणियों में आती है, तो अधिकृत व्यक्ति केवल वही जानकारी प्रदान करेगा जो अधिनियम के तहत अनुमत है और अपने अधिकार क्षेत्र में है और शेष भाग को कारण बताते हुए अस्वीकृत करें। (4) सूचना की आपूर्ति यथाशीघ्र, सामान्यतया पंद्रह दिनों के भीतर और किसी भी स्थिति में आवेदन प्राप्त होने की तारीख से तीस दिनों के भीतर, शेष राशि, यदि कोई हो, को अधिकृत व्यक्ति को जमा करने पर की जाएगी, जानकारी एकत्र करने से पहले। फॉर्म 'एफ' में सूचना की प्राप्ति के टोकन के रूप में आवेदक से एक उचित 'पावती' प्राप्त की जाएगी।

*5. अपील।*
- (1) कोई भी व्यक्ति:- (ए) जो फॉर्म 'ए' जमा करने के तीस दिनों के भीतर अधिकृत व्यक्ति से फॉर्म 'सी' या फॉर्म 'डी' में प्रतिक्रिया देने में विफल रहता है, या (बी) निर्धारित अवधि के भीतर प्राप्त प्रतिक्रिया से व्यथित है, अपीलीय प्राधिकारी के पास प्रपत्र 'एफ' में अपील और अपीलीय प्राधिकारी के पास नियम 8 के अनुसार अपील के लिए शुल्क जमा करता है। (2) अपील प्राप्त होने पर, अपील प्राधिकारी अपील की प्राप्ति की पावती देगा और आवेदक को सुनवाई का अवसर देने के बाद इसे प्रस्तुत करने की तारीख से तीस दिनों के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा और इसकी एक प्रति भेजेगा संबंधित अधिकृत व्यक्ति को निर्णय। (3) यदि अपील की अनुमति दी जाती है, तो अपील प्राधिकारी द्वारा आदेशित अवधि के भीतर अधिकृत व्यक्ति द्वारा आवेदक को जानकारी प्रदान की जाएगी। यह अवधि आदेश प्राप्त होने की तिथि से तीस दिनों से अधिक नहीं होगी।

*6. लोक प्राधिकरण द्वारा सूचना का स्वत: प्रकाशन।*

- (1) लोक प्राधिकरण अधिनियम की धारा 4 की उप-धारा (1) के अनुसार प्रत्येक वर्ष उप-धारा ( 1) अधिनियम की धारा 4 के। (2) ऐसी सूचना सूचना काउंटरों, इंटरनेट के माध्यम से भी जनता को उपलब्ध करायी जा सकती है और प्राधिकृत व्यक्ति और अपीलीय प्राधिकारी के कार्यालय में विशिष्ट स्थानों पर नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित की जा सकती है।

*7. शुल्क लगाना।*

- (1) प्राधिकृत व्यक्ति निम्नलिखित दरों पर शुल्क वसूल करेगा, अर्थात्:- (ए) आवेदन शुल्क :

(i) निविदाओं से संबंधित जानकारी दस्तावेज़/बोली/उद्धरण/व्यवसाय संपर्क : पांच सौ रुपए प्रति आवेदन। (ii) उपरोक्त (i) के अलावा अन्य जानकारी पचास रुपये प्रति आवेदन (बी) अन्य शुल्क: क्र.सं. जानकारी का विवरण कीमत/शुल्क रुपये में 1 जहां जानकारी उपलब्ध है एक मूल्य प्रकाशन का रूप। प्रकाशन की कीमत इतनी तय। 2 मूल्य प्रकाशन के अलावा अन्य के लिए। माध्यम की लागत या प्रिंट लागत मूल्य। (2) अपीलीय प्राधिकारी प्रति अपील पचास रुपए का शुल्क वसूल करेगा।

High Court of Madhya Pradesh (Right to Information) Rules, 2006

High Court of Madhya Pradesh (Right to Information) Rules, 2006


न्यायालय का सी. एन. आई. ( CNI ) संविधान को कानून मानने से किया इन्कार, चर्च ऑफ नार्थ इंडिया के लिए खुशखबरी

 

चर्च ऑफ नार्थ इंडिया ( Church Of North India )

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 चर्च ऑफ नार्थ इंडिया ( Church Of North India )  के सभी सदस्यों के लिए खुशखबरी यह है कि अब चर्च के सदस्यों को  सी. एन. आई. के पदाधिकारियों पर सिविल केस करने पर सदस्यता समाप्त करने का डर नही है।

अजमेर के सिविल कोर्ट ने बिशप दरबारा सिंह बनाम प्रेम चंद सिंह मॉडरेटर केस  में 7/11 की एप्लिकेशन पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में स्प्ष्ट कर दिया है कि सी. एन. आई.संविधान कोई विधि (कानून) नही है जोकि किसी भी व्यक्ति को सिविल कोर्ट में जाने से रोक सके।भारत का प्रत्येक व्यक्ति न्याय हेतु सिविल न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र है।

जबकि पिंटू तिवारी कोर्ट में चिल्ला चिल्ला कर दोहाई दे रहा था कि साहब सी.एन. आई. का अपना संविधान है , इस केस में वादी सिविल न्यायालय में नही जा सकता है। सी. एन. आई. के सदस्यों के लिए पास्ट्रेट कोर्ट, डायसिसन कोर्ट और सिनोड कोर्ट है।

लेकिन कोर्ट ने पिंटू तिवारी की कोई बात नही मानी।

सी. एन. आई. की कलीसियाओं अब जाग जाओ और इनके गलत कामो के खिलाफ आवाज़ उठाओ और खुल कर सिविल  न्यायालय में अपने अधिकारों के लिए लड़ो। अब सी. एन. आई. के किसी भी सदस्य की सदस्यता समाप्त नही हो सकती।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने फर्जी पत्रकार के विरुद्ध की कारवाई, फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा 6 महीने के लिए रासुका की हुई कार्यवाही

इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने फर्जी पत्रकार के विरुद्ध की कारवाई, फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा 6 महीने के लिए रासुका की हुई कार्यवाही


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🔷 फर्जी वसूलीबाज कथित पत्रकार जबलपुर के बादल पटेल, नीमच के नरेंद्र गहलोत, अविनाश जाजपुर के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई करने की उठने लगी मांग
🔷 अड़ीबाजो की पत्रकार गैंग जबलपुर के बादल पटेल फर्जी आइसना के प्रदेश सेक्रेटरी ( करीब 8 केस दर्ज क्रिमिनल ), नरेंद्र गहलोत फर्जी आइसना के प्रदेश कोषाध्यक्ष ( करीब 4 केस दर्ज क्रिमिनल ), अविनाश जाजपुर फर्जी आइसना के इंदौर संभाग के महासचिव,
🔷 फर्जी आइसना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं अवधेश भार्गव ( करीब 10 केस दर्ज क्रिमिनल 100 से ज्यादा क्रिमिनल कांड, कई अपराधिक प्रकरण में माननीय न्यायालय, हाई कोर्ट में विचाराधीन एवं जांच एजेंसियों में विवेचना में )

इंदौर। कलेक्टर मनीष सिंह ने शासकीय अधिकारियों को भी फर्जी पत्रकारों से दूरी बनाए रखने के दिए निर्देश, कलेक्टर मनीष सिंह ने जिलेवासियों से अपील की है की वसूली के इरादे से आने वाले फर्जी पत्रकारों को करें पुलिस के सुपूर्द

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20 अक्तूबर 2021। इंदौर में जिला प्रशासन द्वारा पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग का गौरखधंधा चलाने वाले गिरोह पर प्रहार शुरू कर दिया गया है। कलेक्टर मनीष सिंह ने जबरन वसूली की कई शिकायतों पर फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा के खिलाफ कड़ी कारवाई करते हुए उसे रासुका के तहत 6 महीने के लिए निरुद्ध कर दिया है।

देवेंद्र मराठा को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 की धारा 3 की उपधारा 2 के तहत तथा गृह विभाग के आदेश दिनांक 17/09/2021 के तहत तथा जिला दंडाधिकारी को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 6 माह के लिए सेंट्रल जेल इंदौर में निरुद्ध करने के लिए आदेश जारी कर दिए गए है।

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देवेंद्र पिता रमेशचन्द्र मराठा निवासी अयोध्या नगरी,नंदा नगर को शिकायत के आधार पर लसुडिया पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। देवेंद्र मराठा के ख़िलाफ़ ढाबा, होटल, कालोनाइज़र, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और ज़िम संचालकों ने सांध्य दैनिक अख़बार में खबर छापने के नाम पर जबरिया वसूली की शिकायत दर्ज करवाई थी। देवेंद्र मराठा ने कई खबरों के आधार पर लोगों को ब्लैकमेल भी किया गया।

कलेक्टर मनीष सिंह ने इस कार्रवाई के साथ पत्रकारिता की आड़ में पनप रहे संगठित अपराध पर नियंत्रण करने के लिए जिलेवासियों का आवाह्न करते हुए कहा है की यदि कोई भी व्यक्ति पत्रकारिता की आड़ में वसूली का प्रयास करता है तो वे उसे बिना किसी भय के पुलिस के सुपूर्द करें। कलेक्टर श्री मनीष सिंह ने शासकीय विभाग के सभी अधिकारियों को भी निर्देशित किया है कि फर्जी पत्रकारों से दूरी बनाकर रखें।

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश

 

अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश


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मारपीट, एट्रोसिटी के बाद हनिट्रेप में गिरफ्तार फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत उगल रहा है कई चौकाने वाले राज, पत्रकारिता के किरदार में घुम रहे कई ख्यातनाम चेहरो से भी जल्द उतरेगा नकाब, तस्कर लाबी से भी जुड़े है हनिट्रेप गिरोह के तार, भोपाल में सरगना

अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश

भोपाल के फर्जी आइसना के अड़ीबाज रंडीबाज कथित पत्रकार अवधेश भार्गव की गैंग एक गुर्गा और फर्जी आइसना का कोषाध्यक्ष नरेंद्र गेहलोत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, यह अपने आका के साथ मिलकर पत्रकारिता एवं पत्रकार संगठन फर्जी आइसना की आड़ में लोगों के साथ जैसा कि इनके आका फर्जी पत्रकार अवधेश भार्गव करते हैं वैसे ही सारे क्रियाकर्म में यह नीमच में गिरफ्तार हो चुके हैं इनके ऊपर नीमच में एफ आई आर दर्ज होते ही यह भोपाल अपने आका के पास पहुंच गए थे भोपाल में आकर इन्होंने अवधेश भार्गव की सरपरस्ती और सतीश सिंह के निवास पर फरारी काटी ।

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कहां-कहां यह जालसाज रहे इसकी जांच पड़ताल में पुलिस लग गई है अभी रिमांड पर लेकर नरेंद्र गहलोत की कॉल डिटेल खगाली जा रही है कि इसके काले कारनामों का अंजाम देने में कौन-कौन इसके साथ ही ज़ुड़े हुये हैं। दो और फर्जी आइसना के पदाधिकारी भी इसी मामले में भी फरार है, दो शागिर्द 2 माह पहले जबलपुर में गिरफ्तार होकर सेंट्रल जेल में बंद है एक हनी दिल्ली तिहाड़ जेल में बंद है । अभी एक ताजा ताजा गर्म मामला आज फिर जनता के सामने आ गया।

अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश

नीमच। शहर के चर्चित हनिट्रेप मामले में कुख्यात आरोपी नरेन्द्र गेहलोत को केंट पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कोर्ट ने 7 दिनो के रिमांड पर आरोपी नरेन्द्र गेहलोत को पुलिस को सौपा है। वही हनिट्रेप मामले से जुड़े अन्य आरोपी अविनाश जाजपुरा और दिलीप भारद्वाज फिलहाल फरार बताए जा रहे है। जिनकी पुलिस सरगर्मी से तलाश में जुटी है।

इधर रिमांड अवधि में नरेन्द्र गेहलोत ने पुछताछ में कई चौकाने वाले राज उगले है। सूत्रो के मुताबिक आरोपी नरेन्द्र गेहलोत ने हनिट्रेप गिरोह से जुड़े उसके अन्य साथियो के नाम भी पुलिस पुछताछ में उजागर किए है। बताया जा रहा है कि विगत कई समय से पत्रकारिता की आड में संदिग्ध गतिविधियो को अंजाम दे रहे हनिट्रेप गिरोह से जुड़े ऐसे कई चेहरे भी सामने आ सकते है जो नीमच पत्रकारिता जगत के ख्यातनाम होेने का दम भरते है।

रिमांड के दौरान आरोपी नरेन्द्र गेहलोत ने पुलिस पुछताछ में खुलासा किया कि वह अलग—अलग कम्पनीयो की फर्जी सिमो का उपयोग अपनी अवैध गतिविधियो को अंजाम देने के लिए करता था। पुलिस ने आरोपी द्वारा उपयोग नम्बरो की कॉल डिटेल्स खंगाली है, जिसके आधार पर पत्रकारिता के किरदार में घुम रहे कई नामचीन चेहरो से पर्दा जल्द उठ सकता है..?

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गौरतलब है कि दिनांक 30 सितम्बर की देर शाम पत्रकार अरूण यादव को आरोपी नरेन्द्र गेहलोत फव्वारा चौक से गुमराह कर कार में बिठाकर अपने निवासी पर ले गया था। जहां पहले से दो अन्य आरोपी अविनाश जाजपुरा और दिलीप भारद्वाज मौजुद थे, जिन्होने अरूण यादव को बंधक बनाकर हनिट्रेप से जुड़ी ब्रेकिंग डालने की बात पर मारपीट की थी।

[अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश[/caption]

जिसके बाद केंट पुलिस ने सभी आरोपियो पर धारा 294, 342, 323, 506, 34, 384, 389 तथा एट्रोसिटी में प्रकरण दर्ज किया ही था कि कुछ दिनो बाद शहर के एक चर्चित व्यवसायी ने हनिट्रेप के मामले में आरोपी नरेन्द्र गेहलोत, अविनाश जाजपुरा, दिलीप भारद्वाज सहित अन्य लोगो पर धारा 294, 323, 506, 328, 356, 384, 389, 365, 34, 120—बी के तहत पुलिस ने आरोपी के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया है।

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तस्कर लाबी से भी जुड़े है आरोपियो के तार

खबरो के मुताबिक पुलिस रिमांड के दौरान आरोपी नरेन्द्र गेहलोत से पुछताछ व कॉल डिटेल्स के आधार पर सामने आया है कि हनिट्रेप गैंग से जुड़े सभी आरोपीयो का कनेक्शन तस्करो के साथ भी रहा है। जो अफीम —डोडाचूरा जैसे मादक पदार्थो की तस्करी के मामलो में तोड़बट्टे से लेकर तस्करो को संरक्षण देने का कृत्य भी इनके द्वारा किया जाता था। वही अंचल में तस्कर लाबी से जुड़े लोगो को पुलिस के नाम से चमकोमाईसीन देने में भी संदिग्ध तौर पर इनकी अहम भूमिका सामने आई है और इन सब गतिविधियो के पिछे बड़ा लेन—देन इस गिरोह के द्वारा अब तक किया जाता रहा है। जिस पर भी बड़ा खुलासा होने की संभावना जताई जा रही है।

[caption id="attachment_34733" align="alignnone" width="300"]अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश अड़ीबाज अवधेश भार्गव का चेला फर्जी पत्रकार नरेन्द्र गेहलोत हनिट्रेप में गिरफ्तार 2 आरोपी फरार, पत्रकारिता की आड़ में काले कारनामे, भोपाल के सरगना की तलाश[/caption]

हर इलाके में फैलाया हुस्न का जाल

हुस्न के जाल में पहले सभ्रांत परिवार से जुड़े भोलेभाले लोगो को फंसाना और फिर एक षड़यंत्र के तहत हनि गर्ल के साथ मौजुद युवक का वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करने वाला हनिट्रेप गिरोह पिछले कुछ समय से नीमच—मंदसौर जिले में सक्रिय होकर अपने अवैध काम को अंजाम दे रहा था। जहां गिरोह में शामिल नरेन्द्र गेहलोत, अविनाश जाजपुरा, दिलीप भारद्वाज सहित अन्य लोगो ने अब तक कितने ही भोलेभाले लोगो को हनिट्रेप का शिकार बनाया और समाज में प्रतिष्ठा धुमिल करने की धौंस बताकर लाखो रूपये की वसूली उनसे की। हनिट्रेप गिरोह ने इस पुरे षड़यंत्र को रचने कें लिए हर इलाके में हनि महिलाओ को तैयार किया था, जो इनकी बनाई गई स्क्रिप्ट के अनुसार अपना किरदार निभाती थी।

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जानकारी के मुताबिक विगत कुछ समय पूर्व मनासा क्षेत्र के भाजपा नेता के साथ कारित हुए हनिट्रेप कांड में भी इसी गिरोह से जुड़े सदस्य की भूमिका रही थी। जिसके बाद मंदसौर के पिपलियामंडी में इस गिरोह ने हनिट्रेप को अंजाम दिया। इसके साथ ही हनिट्रेप कांड से जुड़े कई मामलो में भी इस गिरोह की भूमिका संदिग्ध रही है। जिसकी पड़ताल भी पुलिस कर रही है।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।

  

भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।


भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।

भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India ; PCI) एक संविघिक स्वायत्तशासी संगठन है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने व उसे बनाए रखने, जन अभिरूचि का उच्च मानक सुनिश्चित करने से और नागरिकों के अघिकारों व दायित्वों के प्रति उचित भावना उत्पन्न करने का दायित्व निबाहता है। सर्वप्रथम इसकी स्थापना ४ जुलाई सन् १९६६ को हुई थी।


अध्यक्ष परिषद का प्रमुख होता है जिसे राज्यसभा के सभापति, लोकसभा अघ्यक्ष और प्रेस परिषद के सदस्यों में चुना गया एक व्यक्ति मिलकर नामजद करते हैं। परिषद के अघिकांश सदस्य पत्रकार बिरादरी से होते हैं लेकिन इनमें से तीन सदस्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बार कांउसिल आफ इंडिया और साहित्य अकादमी से जुड़े होते हैं तथा पांच सदस्य राज्यसभा व लोकसभा से नामजद किए जाते हैं - राज्य सभा से दो और लोकसभा से तीन।


प्रेस परिषद, प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर विचार करती है। परिषद को सरकार सहित किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या भर्त्सना कर सकती है या निंदा कर सकती है या किसी सम्पादक या पत्रकार के आचरण को गलत ठहरा सकती है। परिषद के निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।


काफी मात्रा में सरकार से घन प्राप्त करने के बावजूद इस परिषद को काम करने की पूरी स्वतंत्रता है तथा इसके संविघिक दायित्वों के निर्वहन पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है।


इतिहास 

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सन् १९५४ में प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस परिषद् की स्थापना की अनुशंशा की।

पहली बार ४ जुलाई सन् १९६६ को स्थापित

सन् ०१ जनवरी १९७६ को आन्तरिक आपातकाल के समय भंग

सन् १९७८ में नया प्रेस परिषद अधिनियम लागू

सन् १९७९ में नए सिरे से स्थापित

प्रेस परिषद् अधिनियम, १९७८ संपादित करें


प्रेस परिषद् की शक्तियाँ निम्नानुसार अधिनियम की धारा 14 और 15 में दी गई हैं।


परिषद् की निधि

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अधिनियम में दिया गया है कि परि­षद, अधिनियम में अंतर्गत अपने कार्य करने के उद्देश्य से, पंजीकृत समाचारत्रों और समाचार एजेंसियों से निर्दि­ट दरों पर उद्ग्रहण शुल्क ले सकती है। इसके अतिरिक्त, केन्द्रीय सरकार, द्वारा परिषद् को अपने कार्य करने के लिये, इसे धन, जैसाकि केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, देने का व्यादेश दिया गया है।


परिषद् की शक्तियाँ

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परिनिंदा करने की शक्ति

14.1 जहाँ परिषद् को, उससे किए गए परिवाद के प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी समाचारपत्र या सामाचार एजेंसी ने पत्रकारिक सदाचार या लोक-रूचि के स्तर का अतिवर्तन किया है या किसी सम्पादक या श्रमजीवी पत्रकार ने कोई वृत्तिक अवचार किया है, वहां परिषद् सम्बद्ध समाचारत्र या समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस रीति से जाँच कर सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गये विनियमों द्वारा उपबन्धित हो और यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है तो वह ऐसे कारणों से जो लेखवद्ध किये जायेंगे, यथास्थिति उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकेगी, उसकी भर्त्सना कर सकेगी या उसकी परिनिंदा कर सकेगी या उस संपादक या पत्रकार के आचरण का अनुमोदन कर सकेगी, परंतु यदि अध्यक्ष की राम में जाँच करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है तो परिषद् किसी परिवाद का संज्ञान नहीं कर सकेगी।


14.2 यदि परिषद् की यह राय है कि लोकहित् में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह किसी समाचारपत्र से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह समाचारपत्र या समाचार एजेंसी, संपादक या उसमें कार्य करने वाले पत्रकार के विरूद्ध इस धारा के अधीन किसी जाँच से संबंधित किन्हीं विशि­टयों को, जिनके अंतर्गत उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार का नाम भी है उसमें ऐसी नीति से जैसा परिषद् ठीक समझे प्रकाशित करे।


14.3 उपधारा 1, की किसी भी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि वह परिषद् को किसी ऐसे मामले में जाँच करने की शक्ति प्रदान करती है जिसके बारे में कोई कार्रवाई किसी न्यायालय में लम्बित हो।


14.4 यथास्थिति उपधारा 1, या उपधारा 2, के अधीन परिषद् का विनिश्चय अंतिम होगा और उसे किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।


परिषद् की साधारण शक्तियाँ

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14.5 इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के पालन या कोई जाँच करने के प्रयोजन के लिए परिषद् को निम्नलिखित बातों के बारे में संपूर्ण भारत में वे ही शक्तियाँ होंगी जो वाद का विचारण करते समय


1908 का 5, सिविल न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन निहित हैं, अर्थात-


क, व्यक्तियों को समन करना और हाजिर कराना तथा उनकी शपथ पर परीक्षा करना,


ख, दस्तावेजों का प्रकटीकरण और उनका निरीक्षण,


ग, साक्ष्य का शपथ कर लिया जाना,


घ, किसी न्यायालय का कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपियों की अध्यपेक्षा करना,


ड़, साक्षियों का दस्तावेज़ की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना,


च, कोई अन्य विषय जो विहित जाए।


2, उपधारा 1, की कोई बात किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को उस समाचारपत्र द्वारा प्रकाशित या उस समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार द्वारा प्राप्त रिपोर्ट किये गये किसी समाचार या सूचना का स्रोत प्रकट करने के लिए विवश करने वाली नहीं समझी जायेगी।


1860 का 45, 3, परिषद् द्वारा की गयी प्रत्येक जाँच भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही समझी जायेगी।


4, यदि परिषद् अपने उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए या अधिानियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के लिए आवश्यक समझती है तो वह अपने किसी विनिश्चय में या रिपोर्ट में किसी प्राधिकरण के, जिसके अन्तर्गत सरकार भी है, आचरण के संबंध में ऐसा मत प्रकट कर सकेगी जो वह ठीक समझे। शिक्षाविदों की विशि­ट मंडली द्वारा संवारा गया है। उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायामूर्ति श्री जे. आर. मधोलकर, पहले अध्यक्ष थे जिन्होंने 16 नवम्बर 1966 से 1 मार्च 1968 तक परिषद् की अध्यक्षता की। इसके पश्चात न्यायामूर्ति श्री एन. राजगोपाला अय्यनगर 4 मई 1968 से 1 जनवरी 1976 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. ग्रोवर 3 अप्रैल 1979 से 9 अक्टूबर 1985 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. सेन 10 अक्टूबर 1985 से 18 जनवरी 1989 तक और न्यायामूर्ति श्री आर. एस. सरकारिया 19 जनवरी 1989 से 24 जुलाई 1995 तक और श्री पी. बी. सार्वेत 24 जुलाई 1995 से अब तक परिषद् के अध्यक्ष रहे हैं। ये उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे। इन सभी ने परिषद् के दर्शन और कार्यों में गहन वचनवद्धता के साथ, परिषद् का मार्गदर्शन किया। परिषद् इनसे निर्देश पाकर, इनके ज्ञान और बुद्धि से अत्यधिक लाभान्वित हुई।


परिषद् की कार्यप्रणाली

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परिषद् मूलतः अपनी जाँच समितियों के माध्यम से अपना कार्य करती है, तथा पत्रकारिता नियमों के उल्लंघन के लिए प्रेस के विरूद्ध अथवा प्राधिकारियों द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के लिए ब्रेक्स से प्राप्त शिकायतों पर निर्णय देती है। परिषद् में शिकायत दर्ज करने की नियत प्रक्रिया है। एक शिकायतकर्ता के लिये अनिवार्य है कि वह प्रतिवादी समाचारपत्र के संपादक को लिखकर उनका ध्यान प्रथमतः पत्रकारिता नीति के उल्लघंन अथवा लोकरूचि के विरूद्ध अपराध की ओर आकृ­ट करे। शिकायत किये गये मामले की परिषद् को कतरन भेजने के अतिरिक्त शिकायतकर्ता के लिये यह घो­ाणा करना आवश्यक है कि उन्होंने अपनी संपूर्ण जानकारी तथा विश्वास के अनुसार परिषद् के समक्ष संपूर्ण तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं तथा शिकायत में कथित किसी वि­ाय में किसी न्यायालय में कोई मामला लंबित नहीं है और वह कि यदि परिषद् के सम्मुख जाँच लंबित होने के दौरान शिकायत में कथित कोई मामला न्यायालय की किसी कार्यवाही का वि­ाय बन जाता है तो वे तत्काल इसकी सूचना परिषद् को देंगे। इस घो­ाणा का कारण यह है कि अधिनियम की धारा 14, 3, को देखते हुए, परिषद् ऐसे किसी मामले में कार्यवाही नहीं कर सकती जोकि न्यायाधीन हो।


यदि अध्यक्ष महोदय को ऐसा लगता है कि जाँच के पर्याप्त आधार नहीं है, तो शिकायत खारिज कर, परिषद् को इसकी रिपोर्ट कर सकते हैं, अन्यथा समाचारपत्र के संपादक अथवा सम्बद्ध पत्रकार से कारण बताने के लिए कहा जाता है कि उनके विरूद्ध कार्यवाही न की जाये। संपादक अथवा पत्रकार से लिखित वक्तव्य तथा अन्य सम्बद्ध सामग्री प्राप्त होने पर, परिषद् का सचिवालय, जाँच समिति के सम्मुख मामला रखता है। जाँच समिति विस्तार से शिकायत की जाँच और परीक्षण करती है। यदि आवशक हो, तो यह दोनों पक्षों से अन्य विवरण अथवा दस्तावेजों की माँग करती है। पार्टियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने अथवा कानूनी पेशेवर सहित अपने प्राधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से जाँच समिति के सम्मुख साक्ष्य देने का अवसर दिया जाता है। उपलब्ध तथ्यों और जाँच समिति के सम्मुख दये गये शपथपत्रों अथवा मौखिक साक्ष्य के आधार पर समिति अपनी उपलब्धियाँ और सिफारिशें तैयार करती है और परिषद् के सम्मुख रखती है जोकि उन्हें स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है। जहाँ परिषद् संतु­ट होती है कि एक समाचार पत्र अथवा समाचार एजेंसी ने पत्रकरिता नीति के स्तरों अथवा जनरूचि का उल्लंघन किया है अथवा एक संपादक अथवा श्रमजीवी पत्रकार ने व्यावसायिक कदाचार किया है, तो परिषद् जैसी स्थिति हो, समाचापत्र, समाचार एजेंसी, संपादक अथवा पत्रकार की परिनिन्दा, भर्त्सना कर सकती है अथवा उन्हें चेतावनी दे सकती है अथवा उनके आचरण का अनुमोदन कर सकती है। प्राधिकारियों के विरूद्ध प्रेस द्वारा दर्ज शिकायतों में, परिषद् को सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण के सबंध में ऐसी टिप्पणियां, जैसी वह उचित समझे, करने का अधिकार है। परिषद् के निर्णय अंतिम होते है और किसी विधि न्यायालय में उनपर आपत्ति नहीं की जा सकती। अतः इस प्रकार परिषद् को अत्यधिक नैतिक प्राधिकार है। यद्यपि इसके पास कानूनी रूप से देने के लिये दंडात्मक अधिकार नहीं है।


परिषद् द्वारा तैयार किये गये जाँच विनियम, अध्यक्ष महोदय को प्रेस परिषद् अधिनियम की परिधि में आने वाले किसी मामले के सबंध में मूल कार्यवाही करने अथवा किसी पार्टी को नोटिस जारी करने का अधिकार देते है। सामान्य जाँच के लिये शिकायतकर्ता द्वारा परिषद् के सम्मुख एक शिकायत दर्ज करनी होती है, इसके अलावा मूल कार्यवाही के लिए काफी हद तक वही प्रक्रिया होती है जैसाकि सामान्य जाँच में होती है। अपने कार्य करने के लिये अथवा अधिनियम के अंतर्गत जाँच करने के लिये, परिषद् निम्नलिखित मामलों के सबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत एक मुकदमें की छानबीन के लिये सिविल न्यायालय में निहित कुछ अधिकारों का इस्तेमाल करती है


(क) लोगों को सम्मन करने और उपस्थिति हेतु दबाव डालने तथा शपथ देकर उनका परीक्षण करने हेतु।


(ख) दस्तावेजों की खोज और निरीक्षण की आवश्यकता हेतु।


(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य की प्राप्ति हेतु।


(घ) किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से किसी सरकारी रिकार्ड अथवा इसकी प्रतियों की मांग हेतु।


(ड.) गवाहों अथवा दस्तावेजों के परीक्षण हेतु कमीशन जारी करना और


(च) कोई अन्य मामला, जैसकि निर्दि­ट किया जाये।


परिषद् अपना कार्य करने के लिये पार्टियों से सहयोग की आशा करती है। कम से कम दो मामलों में, जहाँ परिषद् ने गौर किया कि पार्टियाँ (पक्ष) एकदम असहयोगी अथवा कठोर थीं, वहाँ परिषद् ने अत्याधिक संयम एवं अनिच्छा से, अपने समक्ष उपस्थित होने और अथवा रिकार्ड आदि देने हेतु उन्हें विवश करने के अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत अपने प्राधिकार का इस्तेमाल किया। चण्डीगढ. के कुछ पत्रकारों की मुख्यमंत्री और हरियाणा सरकार के विरूद्ध शिकायत में, परिषद् द्वारा भेजे गये नोटिस का जवाब देने में प्राधिकारियों द्वारा अस रहने पर, उन्हें प्राधिकारियों को परिषद् के बल प्रयोग संबंधी अधिकारों के इस्तेमाल के बारे में, पहले परिषद् को चेतावनी देनी पडी.। इसी प्रकार बी. जी. वर्गीय के दी हिन्दुस्तान टाइम्स के विरूद्ध प्रसिद्ध मामलें में, बिरलाज को श्री वर्गीय और श्री के. के. बिरला के बीच हुआ पूर्ण पत्राचार प्रदान करने का निर्देश दिया गया।


एक समाचारपत्र, जिसे परिषद् द्वारा तीन बार परिनिंदित किया गया था, के मामले में कुछ अवधि हेतु डाक की रियायती दरों अथवा अखबारी कागज के वितरण, विज्ञापनों, मान्यता के रूप में कुछ सुविधाएं और रियायतें न देने पर सम्बद्ध प्राधिकारियों से सिफारिश करने का परिषद् को अधिकार दिये जाने के लिए, परिषद् ने 1980 में अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया था।


प्राधिकारियों की ओर से परिषद् की सिफारिसों के स्वीकृति की अनिवार्य होने की मांग की गई। इसके अतिरिक्त परिषद् का विचार था कि, समाचारपत्रों के मामलों के समान प्रेस परिषद् अधिनियम 1978 की धारा 15 (4) के अंतर्गत, सरकार सहित किसी प्राधिकरण के आचरण का सम्मान करते हुए अपने किन्हीं निर्णयों अथवा रिपोर्टो में, ऐसी टिप्पणियां, जैसी वह उचित समझे, करने के परिषद् के अधिकार में ऐसे प्राधिकारियों को चेतावनी देने, उनकी भर्त्सना करने अथवा उन्हें परिनिंदित करने के अधिकार भी शामिल होना चाहिए और यह कि, इस संबंध में परिषद् की टिप्पण्यों को संसद के दोनों सदनों और अथवा सम्बद्ध राज्य के विधान के सम्मुख रखा जाना चाहिए। वर्­ष 1987 में, परिषद् ने मामले पर पुनर्विचार किया और विस्तृत विचार-विमर्श के पश्चात दंडात्मक अधिकार हेतु प्रस्ताव को वापिस लेने का निर्णय किया क्योंकि इस संबंध में पुनर्विचार किया गया कि वर्तमान परिस्थितियों में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये प्राधिकारियों द्वारा इन अधिकारों का दुरूपयोग किया जा सकता था।


तभी से, बार-बार, सुझाव सन्दर्भ परिषद् को दिये गये हैं कि चूककर्ता समाचारपत्रों/पत्रकारों को दंड देने के लिए परिषद् के पास दंडात्मक अधिकार होने चाहिए। इसके जवाब में परिषद् ने लगातार यही विचार किया है कि अधिनियम की विद्यमान योजना के अंतर्गत इसे दिये गये नैतिक अधिकार पर्याप्त हैं। अक्टूबर 1992 में नई दिल्ली में प्रेस परि­ादों के अंतर्रा­ट्रीय सम्मेलन में अपने उद्घाटन भा­षण में सूचना और प्रसारण केन्द्रीय मंत्री द्वारा यह सुझाव दोहराया गया, परंतु परिषद् नें निम्निलिखित कारणों से इसे सर्व सम्मति से अस्वीकार कर दिया -


यदि परिषद् को दंड देने/जुर्माना लगाने का अधिकार दे दिया जाता तो यह दंड देने के अधिकार के समान होता जोकि केवल तभी लागू होता है जब प्रेस द्वारा सरकार तथा इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतें की जाती हैं। सार्थक दंड देने का अधिकार कई मामलों को उठाता है जिनमें क, प्रमाण का दायित्व, ख, प्रमाण का स्तर, ग, कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार और लागत और घ, समीक्षा और अथवा अपील उपलब्ध होगी अथवा नहीं, शामिल हैं। इन मामलों में से सभी अथवा किसी एक का प्रभाव मूल आधार के विरोध में हो सकता है कि प्रेस परि­ादें शिकायतों की सुनवाई के लिये लोकतांत्रिक, प्रभावी और सस्ती सुविधा प्रदान करती हैं और यह कि परिणामी अनिवार्यता यह होगी कि इसके परिणामस्वरूप प्रेस परि­ादें औपचारिकता, लागत और पहुँच की जानी-मानी समस्याओं और न्यायिक अधिकार का प्रयोग करने वाले न्यायालय बन जायेंगी और समान रूप से विलंब होगा जिससे प्रेस परिषद् का मूल उद्देश्य विफल हो जायेगा।


दिसंबर 1992 में, परिषद् को केन्द्रीय सरकार से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें इस वि­ाय पर परिषद् के विचार माँगे गये कि क्या यह सुनिश्चत करने के लिए कि, सांप्रदायिक लेखों के संबंध में मार्गनिर्देशों के उल्लंघन हेतु प्रेस परिषद् द्वारा परिनिंदित समाचारपत्रों/पत्रिकाओं को सरकार से मिलने वाले प्रोत्साहन जैसे विज्ञापन आदि से वंचित रखा जा सकता है, कोई प्रक्रिया निर्दि­ट की जा सकती है और क्या प्रेस परिषद् यह सुझाव देने की स्थिति में होगी कि जब यह एक समाचारपत्र/पत्रिका को मार्गनिर्देशों के उल्लंघन का दो­षी ठहराती है तब क्या कार्यवाही की जानी चाहिए। परिषद् ने जून 93 की अपनी बैठक में, परिषद् को दंडात्मक अधिकार दिये जाने के विरूद्ध विगत समय में इसके द्वारा लिये गये स्टैंड के प्रकाश में मामले पर विचार किया। मामले पर गहराई से विचार करने पर, परिषद् ने अनुभव किया कि इस समय परिषद् द्वारा जिस नैतिक अधिकार का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह काफी प्रभावी है और प्रेस को आत्म नियमन का मार्ग दिखाने में दंडात्मक अधिकारों की आवश्यकता नहीं है। हालांकि परिषद् ने निर्णय किया कि यदि एक समाचारपत्र तीन वर्­षों में किसी प्रकार के अनैतिक लेखन के लिये दो बार परिनिंदित किया जाता है, तब ऐसे निर्णयों की प्रतियाँ भारत सरकार के मंत्रिमंडल सचिव और सम्बद्ध राज्य सरकार के मुख्य सचिव, को सूचनार्थ और ऐसी कार्यवाही, जैसाकि वे अपने विवेक और मामले की परिस्थितियों में उचित समझे, हेतु भेजी जानी चाहिए। परिषद् ने निर्णय किया कि तीन वर्­षों की अवधि को दूसरी बार परिनिंदा की तारीख से उल्टे गिनते हुए पूर्ववर्ती तीन वर्­षों के रूप में लिया जायेगा।


आचार संहिता संपादित

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प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचारपत्रों; समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है। ऐसी संहिता बनाना एक सक्रिय कार्य है जिसे समय और घटनाओं के साथ कदम से कदम मिलाना होगा।


निमार्ण संकेत करता है कि प्रेस परिषद् द्वारा मामलों के आधार पर अपने निर्णयों के जरिये संहिता तैयार की जाये। परिषद् द्वारा जनरूचि और पत्रकारिता नीति के उल्लंघन शीर्­ाक के अंतर्गत भारतीय विधि संस्थान के साथ मिलकर पहले वर्­ा 1984 में अपने निर्णयों / मार्गनिर्देशों के जरिये व्यापक सिद्धातों का संग्रह तैयार किया गया था। सिद्धांतों का यह संकलन परिषद् के निर्णयों अथवा अधिनिर्णयों अथवा इसके अथवा इसके द्वारा अथवा इसके अध्यक्ष द्वारा जारी मार्गनिर्देशों से चुना गया है। वर्­ा 1986 में, सरकार और इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतों अथवा मामलों, जोकि दूरगाती और महत्वपूर्ण प्रकृति के थे और जिसमें सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण का सम्मान करते हुए टिप्पणियाँ शामिल थीं, में निर्णयों और सिद्धांतों से सम्बद्ध प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन शीर्­षक के अंतर्गत संकलन का दूसरा भाग प्रकाशित किया गया।


वर्­ष 1986 से संहिता निर्माण की त्वरित प्रकिया सहित शिकायतों की संस्थापना और प्रेस परिषद् द्वारा उनके निपटान में लगातार वृद्धि होती रही है। 1992 में परिषद् ने पत्रकारिता नीति निर्देशिका प्रस्तुत की जिसमें परिषद् द्वारा जारी मार्गनिर्देशों और निर्णयों से छाँटकर लिये गये पत्रकारिता नीति सिद्धांत हैं। चूँकि तब से परिषद् द्वारा प्रेस के अधिकारों और दायित्वों से सम्बद्ध कई अत्यधिक महत्वपूर्ण निर्णय दिये गये हैं, मार्गनिर्देशिका का 162 पृ­ठों का विस्तृत और व्यापक दूसरा संस्करण जारी किया जा चुका है। इसमें निजता के अधिकार की संकल्पना भी दी गई है और इस संबंध में तथा मागदिर्शन हेतु उच्च व्यावसायिक स्तरो के अनुरूप समाचार पत्रोंकिये जाने वाले मार्गनिर्देश भी विनिर्दि­ट किये गये है। प्रेस, सार्वजनिक कर्मचारियों और लोकप्रिय व्यक्तियों के मार्गदर्शन हेतु इसके कुछ पहलुओं में मानहानि कानून का भी सहयोग लिया गया है। परिषद् ने नगरपालिका समिति के सार्वजनिक पदाधिकारियों की कथित मानहानि के संबंध में महत्वपूर्ण अधिनिर्णय दिया कि प्रेस अथवा मीडिया के विरूद्ध नुकसान हेतु कार्यवाही का उपचार, सरकारी पदाधिकारियों को उनकी सरकारी ड्यूटी के निर्वाह से सम्बद्ध उनके कार्यों और आचरण के संबंध में साधारणतया उपलब्ध नहीं है, चाहे प्रकाशन ऐसे तथ्यों और वक्तव्यों पर आधारित हो जोकि सत्य न हो, जब तक कि पदाधिकारी यह स्थापित न करे कि प्रकाशन, सत्य का आदर और परवाह न करते हुए, किया गया था। ऐसे मामले में बचाव पक्ष् मीडिया अथवा प्रेस का सदस्य के लिये यह सिद्ध करना पर्याप्त होगा कि उन्होंने तथ्यों के समुचित सम्यापन के पश्चात कार्य किया, उनके लिये यह सिद्ध करना आवश्यक नहीं है कि उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह सत्य है। परंतु जहाँ यह सिद्ध होता है कि प्रकाशन दुर्भावना अथवा व्यक्त वैर से प्रवृत्त और झूठा है, वहाँ बचाव पक्ष के लिये कोई बचाव नहीं होगा और नुकसान हेतु उत्तरदायी होगा। हालाँकि एक सार्वजनिक पदाधिकारी कोउन मामलों में जोकि उनकी ड्यूटी के निर्वाह से सम्बंद्ध न हों, वही सुरक्षा मिलती है जैसाकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है। हालाँकि न्यायापालिका, संसद और राज्य विधानमंडल इस नियम का अपवाद हैं क्योंकि पूर्ववर्ती इसकी अवमानमा हेतु दंड के अधिकार से सुरक्षित है और उत्तरवर्ती संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के अंतर्गत विशे­ााधिकारों से सुरक्षित है। परिषद् ने आगे दिया है कि इसका अर्थ यह नहीं है कि शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 अथवा कोई समान अधिनियमन अथवा उपबंध जिसे कानूनी शक्ति प्राप्त हो, प्रेस अथवा मीडिया पर नियंत्रण नहीं रख सकते। यह भी दिया गया है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जोकि प्रेस/मीडिया पर पूर्व नियंत्रण रखने अथवा वर्जित रखने का राज्य अथवा इसके अधिकारियों को अधिकार देता हो।


सार्वजनिक पदाधिकारी के निजता के दावे के संबंध में, परिषद् ने निर्दि­ट किया है कि यदि सार्वजनिक पदाधिकारी की निजता और उनके निजी आचरण, आदतों व्यक्तिगत कार्यों और चरित्र की विशेषताओं, जिनका टकराव अथवा संबंध उनकी शासकीय ड्यूटी के समुचित निर्वाह से हो, के बारे में जानने के जानता के अधिकार के मध्य टकराव हो, तो पूर्ववर्ती को उत्तरवर्ती के सामने झुकना चाहिए। हालाँकि, व्यक्तिगत निजता के मामलों में, जोकि उनकी शासकीय ड्यटी के निर्वाह से सम्बद्ध नहीं है, सार्वजनिक पदाधिकारी को वही सुरक्षा मिलती है जोकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है।


यह मार्गनिर्देशिका कुल मिलाकर विधि संबंधी, नैतिक और सदाचार संबंधी समस्याओं जोकि प्रतिदिन समाचारपत्रों के मालिकों, पत्रकारों संपादकों का विरोध करती है, के माध्यम से सुरक्षा और जिम्मेवारी का मार्ग सुझाती है। मार्गनिर्देशिका अकाट्य सिद्धांतों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें व्यापक सामान्य सिद्धांत हैं, जोकि प्रत्येक मामले की परिस्थिति को देखते हुए समुचित विवेक और अनुकूलन के साथ लागू किये जाते है, तो वे व्यावसायिक ईमानदारी के मार्ग सहित पत्रकारों को उनके व्यवसाय के संचालन को आत्म-संयमित करने में उनकी सहायता करेंगे। किसी भी तरह ये थकाउ नहीं है न ही इनका अभिप्राय सख्ती है जोकि प्रेस के स्वच्छंद कार्य में बाधा डालती हो।

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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के सभी सदस्य सावधान इन नटवरलालो से

 

 

इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के सभी सदस्य सावधान इन नटवरलालो से  नई दिल्ली, महासचिव परिपत्र 6/2021 


प्रिय मित्रों, अब यह सामने आ रहा है कि आईएफडब्ल्यूजे में घुसपैठ करने और आम सदस्यों के बीच भ्रम पैदा करने और अंततः इसका फायदा उठाकर संगठन को हथियाने के लिए पीएफआई और राष्ट्र विरोधी ताकतों का एक भव्य डिजाइन था। उनका उद्देश्य कभी भी पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के लिए काम करना या संघर्ष करना नहीं रहा है। यही कारण था कि जिन लोगों ने उस दिन नोएडा में बैठक की, उन्होंने कभी भी श्रमिकों के किसी भी कारण या संघर्ष में भाग नहीं लिया। उनमें से लगभग सभी ने कभी किसी मीडिया हाउस के साथ काम भी नहीं किया है।

बैठक में दो ऐसे थे, जो जबरन वसूली करने वाले और ब्लैकमेल करने वाले थे, जो अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए जेल जा चुके हैं। गौरतलब है कि उन्होंने अपने कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में एक व्यक्ति का नाम सामने रखा है, जिस पर मध्य प्रदेश के छोटे से शहर मंडला में सैकड़ों लोगों को ठगने का आरोप है. वह गिरफ्तारी से फरार है। यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है कि इन धोखेबाजों ने एक ऐसे व्यक्ति की मदद ली, जो आरएसएस के साथ अपनी निकटता का दावा करता रहा है।

इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के सभी सदस्य सावधान इन नटवरलालो से  नई दिल्ली, महासचिव परिपत्र 6/2021 


इसे एक गैर-राजनीतिक मंच का रूप देने के लिए एक योजना के तहत जानबूझकर ऐसा किया गया। उत्तराखंड का एक आदमी था, लगभग एक अनपढ़, जिसने विज्ञापनों के नाम पर धोखा दिया होगा, लेकिन जब विज्ञापनों को पट्टे पर देने के लिए छह सूत्री दिशानिर्देश आए, तो वह चाहता था कि IFWJ आंदोलन का नेतृत्व करे। जब इसे स्वीकार नहीं किया गया, तो वह IFWJ के बारे में पहेली पैदा करने के लिए बैंडबाजे में शामिल हो गया। इन षड्यंत्रकारियों को एक ऐसे व्यक्ति से सक्रिय समर्थन मिला, जिसे लगभग सात साल पहले आईएफडब्ल्यूजे से पहले ही निकाल दिया गया था, क्योंकि प्रिंटिंग मशीन को हथियाने के लिए और विभिन्न सरकारों से प्राप्त भारी मात्रा में धन का हिसाब नहीं दिया गया था। मीडिया घरानों के मालिक भी IFWJ को कमजोर करने के लिए आग लगा रहे हैं, लेकिन निश्चिंत रहें, वे अपने गंदे खेल में सफल नहीं होंगे। 

इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के सभी सदस्य सावधान इन नटवरलालो से  नई दिल्ली, महासचिव परिपत्र 6/2021 


साथियों, IFWJ में कुछ भी गलत न पाकर, उन्होंने किसी भी राज्य सरकार से 25 लाख रुपये लेने और उसी की जेब काटने का मूर्खतापूर्ण और बेतुका आरोप लगाना शुरू कर दिया। इन जोकरों के साथ समस्या यह है कि उन्हें लगता है कि वे मूर्ख पत्रकार हो सकते हैं। कोई भी यह बताएगा कि किसी भी संगठन को सरकारी धन किसी विशेष कारण से बैंक खाते के माध्यम से आता है। अपनी बेशर्मी में उन्होंने पैसे की कोई रसीद नहीं दिखाई। वे इसे नहीं दिखा सकते क्योंकि पिछले सात वर्षों में ऐसा कोई लेनदेन कभी नहीं हुआ। मान लीजिए कि कोई पैसा मिला है, तो उपयोगिता प्रमाण पत्र देना होगा क्योंकि एक प्रणाली है जो सरकार का मार्गदर्शन करती है। 

लेकिन इन धोखेबाजों के अपने खेल होते हैं जो उन्हें बहुत दूर तक जाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। कई देशद्रोही, मजदूर वर्ग विरोधी एजेंट और रैकेटियर हैं जो मीडिया और मीडियाकर्मियों के संगठनों में फिसलने में व्यस्त हैं। कुछ राज्यों में, वे कुछ संगठनों में कुछ पैठ बनाने में कुछ हद तक सफल रहे हैं। हम जल्द ही उन्हें चालबाजों के उनके नापाक मंसूबों के बारे में बताएंगे। इस बीच, हम आप सभी से इन धोखेबाजों से सावधान रहने और एकजुट रहने का अनुरोध करते हैं। खुश रहो। आपको धन्यवाद, सादर, परमानंद पांडेय महासचिव: IFWJ

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

ठगों ने IFWJ पत्रकार संगठन हड़पने के लिए फिर की साजिश, जालसाज ठगों पर कई अपराधिक प्रकरण दर्ज, एक 420 के प्रकरण में फरार

ठगों ने IFWJ पत्रकार संगठन हड़पने के लिए फिर की साजिश, जालसाज ठगों पर कई अपराधिक प्रकरण दर्ज, एक 420 के प्रकरण में फरार

TOC NEWS 

लो पत्रकार साथियों जिसका डर था वही हो गया फिर फिर पत्रकारिता के नाम पर कलंक ने अपनी आदत अनुसार एक पत्रकार संगठन आईएफडब्ल्यूजे में फिर सेंध लगाने की साजिश कर दी, जिनको संगठन ने मान सम्मान और खाने को दिया उसी की थाली में छेद करके जिनकी औकात नहीं उन्होंने संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव को ही फर्जी मीटिंग बुलाकर हटा दिया, पहले भी इन जालसाजों ने जिस जिस संगठन में रहे सभी का सत्यानाश कर चुके हैं, अब यह खबर आ रही है दिल्ली से आईएफडब्ल्यूजे के कार्यालय से संगठन के राष्ट्रीय महासचिव श्री परमानंद पांडे के द्वारा पत्र जारी कर यह जानकारी देश में फैले संगठन के समस्त सदस्य और पदाधिकारियों को अवगत करा रहे हैं। आखिर इनका साजिशकर्ता नटवरलाल कहां-कहां अपनी औकात दिखाएगा, आज उसकी औकात आईएफडब्ल्यूजे के संगठन दिखा दी । आप सभी को संबंधित जानकारी से अवगत होकर ऐसे लोगों से सावधान हो जाना चाहिए।

श्री परमानंद पांडेय सचिव जनरल : आईएफडब्ल्यूजे IFWJ द्वारा जारी नोटिस एवं जानकारी

प्रिय मित्रों,
हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि चार या पांच निराश जोकर, जो दूर-दूर तक मीडियाकर्मियों की समस्याओं से संबंधित नहीं रहे हैं और न ही कभी मीडिया कर्मचारियों के संघर्ष में भाग लिया है, नोएडा के एक क्लब में इकट्ठे हुए और आईएफडब्ल्यूजे को नुकसान पहुंचाने और बदनाम करने का फैसला किया। लेकिन वे बुरी तरह विफल रहे क्योंकि किसी ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन जोकरों का महान संगठन-आईएफडब्ल्यूजे- से कोई संबंध नहीं है, जिसका गौरवशाली इतिहास और पत्रकारों के लिए संघर्ष की गाथा है। ये कॉमेडियन विज्ञापनों को बटोरने, चापलूसी करने और अधिकारियों को चकमा देने के लिए जाने जाते हैं, छोटे-छोटे प्रॉपर्टी डीलर के रूप में काम करते हैं, लेकिन IFWJ के नाम को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। क्लब की बैठक में एक सज्जन थे, जो कई आपराधिक मामलों में जेल गए थे, एक अन्य व्यक्ति जिसका सांप्रदायिकता के साथ अस्पष्ट संबंध है, एक सज्जन जिस पर पटियाला हाउस कोर्ट में दीवानी मुकदमा वापस लेने के लिए नकद और तरह की रिश्वत लेने का आरोप है। बैठक में पीएफआई का एक एजेंट भी मौजूद था। एक बार फिर, एक व्यक्ति था, जो अखबार के मालिकों का एजेंट था/है। सबसे हास्यास्पद बात यह है कि जब इन भैंसों को अपना नाम देने के लिए कोई व्यक्ति नहीं मिला, तो उन्होंने के एम झा जैसे एक बहुत ही सस्ते व्यक्ति को अपना अध्यक्ष पाया, जो कुछ दिन पहले किसी अन्य संगठन में शामिल होने के लिए IFWJ छोड़ दिया था। वह बैठक में भी मौजूद नहीं थे। कोई नहीं जानता कि दूसरे संगठन के संबंध में श्री झा का क्या रुख होगा? उन्होंने श्री मनोज मिश्रा पर महासचिव का पद थोपने का प्रयास किया, जिन्होंने अनुकरणीय तत्परता से और अपनी नियुक्ति के एक घंटे के भीतर खुद को अलग कर लिया। यह उनके व्यक्तित्व में बुनियादी ईमानदारी को दर्शाता है कि सोशल मीडिया पर इस खबर के फैलने के एक घंटे में उन्होंने सभी समूहों में प्रसारित एक और पोस्ट लिखा कि उनका असंतुष्टों के झांसे से कोई लेना-देना नहीं है। साथियों, ये बैंडिकूट राज्य इकाइयों को अपने कुकर्मों के बारे में फोन करते रहे हैं, लेकिन उन्हें सभी राज्य इकाइयों से फटकार मिल रही है। इन जॉनीज़ ने IFWJ नेतृत्व के खिलाफ वित्तीय आरोप लगाकर अपना मतलब दिखाया, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि पिछले छह वर्षों से संगठन कुछ पदाधिकारियों के व्यक्तिगत योगदान पर चल रहा है। भीषण संकट में भी उनमें से एक ने हेमंत तिवारी द्वारा दान किया गया फर्नीचर और कंप्यूटर अपने घर ले लिया था और उन्हें कभी वापस नहीं किया। दुर्भाग्य से, वह IFWJ के कोषाध्यक्ष थे, लेकिन उन्होंने अपनी आत्मा को पुराने धोखेबाज को बेच दिया, जो पूरे पत्रकार समुदाय से घृणा और तिरस्कार करता है। अब साफ है कि ये लोग उसी मास्टर ठग के हाथों में खेल रहे हैं। एकजुट रहो।बहुत जल्द हम उनके गंदे खेल का पर्दाफाश करेंगे। आपको धन्यवाद, सादर,
परमानंद पांडेय
सचिव जनरल: आईएफडब्ल्यूजे IFWJ

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‘‘ANI NEWS INDIA’’ सर्वश्रेष्ठ, निर्भीक, निष्पक्ष व खोजपूर्ण ‘‘न्यूज़ एण्ड व्यूज मिडिया ऑनलाइन नेटवर्क’’ हेतु को स्थानीय स्तर पर कर्मठ, ईमानदार एवं जुझारू कर्मचारियों की सम्पूर्ण मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिले एवं तहसीलों में जिला ब्यूरो प्रमुख / तहसील ब्यूरो प्रमुख / ब्लाक / पंचायत स्तर पर क्षेत्रीय रिपोर्टरों / प्रतिनिधियों / संवाददाताओं की आवश्यकता है।

कार्य क्षेत्र :- जो अपने कार्य क्षेत्र में समाचार / विज्ञापन सम्बन्धी नेटवर्क का संचालन कर सके । आवेदक के आवासीय क्षेत्र के समीपस्थ स्थानीय नियुक्ति।
आवेदन आमन्त्रित :- सम्पूर्ण विवरण बायोडाटा, योग्यता प्रमाण पत्र, पासपोर्ट आकार के स्मार्ट नवीनतम 2 फोटोग्राफ सहित अधिकतम अन्तिम तिथि 15 मई 2018 शाम 5 बजे तक स्वंय / डाक / कोरियर द्वारा आवेदन करें।
नियुक्ति :- सामान्य कार्य परीक्षण, सीधे प्रवेश ( प्रथम आये प्रथम पाये )

पारिश्रमिक :- पारिश्रमिक क्षेत्रिय स्तरीय योग्यतानुसार। ( पांच अंकों मे + )

कार्य :- उम्मीदवार को समाचार तैयार करना आना चाहिए प्रतिदिन न्यूज़ कवरेज अनिवार्य / विज्ञापन (व्यापार) मे रूचि होना अनिवार्य है.
आवश्यक सामग्री :- संसथान तय नियमों के अनुसार आवश्यक सामग्री देगा, परिचय पत्र, पीआरओ लेटर, व्यूज हेतु माइक एवं माइक आईडी दी जाएगी।
प्रशिक्षण :- चयनित उम्मीदवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण भोपाल स्थानीय कार्यालय मे दिया जायेगा, प्रशिक्षण के उपरांत ही तय कार्यक्षेत्र की जबाबदारी दी जावेगी।
पता :- ‘‘ANI NEWS INDIA’’
‘‘न्यूज़ एण्ड व्यूज मिडिया नेटवर्क’’
23/टी-7, गोयल निकेत अपार्टमेंट, प्रेस काम्पलेक्स,
नीयर दैनिक भास्कर प्रेस, जोन-1, एम. पी. नगर, भोपाल (म.प्र.)
मोबाइल : 098932 21036


क्र. पद का नाम योग्यता
1. जिला ब्यूरो प्रमुख स्नातक
2. तहसील ब्यूरो प्रमुख / ब्लाक / हायर सेकेंडरी (12 वीं )
3. क्षेत्रीय रिपोर्टरों / प्रतिनिधियों हायर सेकेंडरी (12 वीं )
4. क्राइम रिपोर्टरों हायर सेकेंडरी (12 वीं )
5. ग्रामीण संवाददाता हाई स्कूल (10 वीं )